राजस्थान के लोक संत व सम्प्रदाय
धार्मिक संत सम्प्रदाय:-
★ संत धन्ना:-
धुवन गांव (टोंक) के एक जाट परिवार में जन्में संत धन्ना ने काशी में रहकर रामानन्द जी से शिक्षा प्राप्त की। इनको राजस्थान में भक्ति आंदोलन का जनक कहा जाता है। ये निर्गुण ईश्वर के उपासक थे।धन्ना ने मोक्ष प्राप्ति के लिये भक्ति पर सर्वाधिक बल दिया। किवंदती है कि धन्ना ने अपने आराध्य की मूर्ति को हठात् भोजन करवाया था।
★ संत पीपा:-
15वीं शताब्दी में गागरोण के खींची राजपूत परिवार में जन्में रामानंद के शिष्य पीपा जी का प्रमुख मंदिर ’समदड़ी’ (बाड़मेर) में है। पीपा ने गागरोण दुर्ग का प्रबंध संभालते हुए दिल्ली के शासक फिरोज शाह तुगलक को परास्त किया। इन्होंने छुआछुत, मूर्तिपूजा, बाह्य आडम्बरों का विरोध करते हुए भक्ति पर बल दिया। संत पीपा की छतरी गागरोण दुर्ग में स्थित है। इनकी गुफा टोडा गांव (टोंक) में है।
★ संत जम्भेश्वर :-
जाम्भोजी का जन्म 1451 में पीपासर (नागौर) में हुआ। इनके पिता लोहट जी पंवार व माता हंसाबाई थी।जांभोजी ने विश्नोई जाति के अनुयायियों के लिये "संभराथल" (बीकानेर) में विश्नोई सम्प्रदाय की स्थापना की। विश्नोई सम्प्रदाय के लिये इन्होंने 29 नियम बनाये। 1526 में इन्होंने ’मुकाम तालवा’ (बीकानेर) में समाधि ली। जहां इनका मंदिर भी है। इन्होंने ’’जम्भसागर’’ व ’’जम्भसंहिता’ नामक ग्रन्थों की रचना की। विश्नोई सम्प्रदाय के लोग पर्यावरण संरक्षक व वन्यजीव प्रेमी कहलाते है। जाम्भोजी को प्रथम पर्यावरण वैज्ञानिक माना जाता है।
★ जसनाथ जी:-
1482 में कतरियासर (बीकानेर) में जाट परिवार में जन्में गुरू गोरखनाथ जी के शिष्य जसनाथ जी ने अपने अनुयायियों के लिये 36 नियम बताये व कतरियासर में जसनाथी सम्प्रदाय की स्थापना की। इस सम्प्रदाय के अनुयायी रात्रि जागरण के अवसर पर ’’अग्नि नृत्य’’ करते है। जसनाथ जी की रचनायें - ’’सिंभूदड़ा’’ व ’’कौंड़ा’’ है। जसनाथ जी के प्रमुख शिष्य- हारोजी, हांसोजी व रूस्तम जी थे।
★ दादू दयाल:-
1544 में अहमदाबाद में जन्मे, राजस्थान के कबीर व स्वामी वृंद्धानंद जी के शिष्य दादू ने भी कबीर की भांति, रूढियों का खण्डन कर हिन्दू मुस्लिम एकता पर बल दिया। दादू जी ने ’’नरैना’’ (जयपुर) में दादू पंथ की स्थापना की। दादू की प्रमुख पीठ नरैना में है, जहां दादूखोल है।
1585 में दादू जी फतेहपुर सीकरी की यात्रा के दौरान अकबर से मुलाकात की। इनसे प्रभावित होकर अकबर ने गौहत्या बंद करवाई। दादू जी के 52 शिष्य थे, जो ’बावन स्तंभा’ कहलाते है। दादू जी की वाणियों का संकलन ’दादू रा दूहा’ व ’दादू री वाणी’ ग्रंथों में है। दादू पंथ के सत्संग स्थलों को ’अलख दरीबा’ कहते है। इस पंथ के निवास स्थान दादू द्वारे कहलाते है। दादू जी के प्रमुख शिष्य- रज्जब जी, सुंदरदास व गरीबदास थे।
दादू पंथ की 5 शाखाएं- नागा, खाकी, विरक्त, उतरादे व खालसा। दादूजी के शिष्य ’रज्जब जी’ जीवन भर दूल्हे के वेश में रहे। इनके प्रमुख सिद्धान्त मूर्तिपुजा का विरोध, हिन्दू मुस्लिम एकता शव को न जलाना व न दफनाना बल्कि उसे जंगली जानवरों के लिए खुला छोड़ देना, निर्गुण ब्रह्मा उपासना है। दादूजी के शव को भी भराणा नामक स्थान पर खुला छोड़ दिया गया था। गुरू को बहुत अधिक महत्व देते हैं। तीर्थ यात्राओं को ढकोसला मानते हैं। इस पंथ के अनुयायी भी जीवन भर अविवाहित रहते है व इनके मृत शरीर को भी जंगली जानवरों के भोजन हेतु खुले में छोड़ दिया जाता है। इनकी (दादू) रचनायें ढ़ूंढ़ाड़ी(सिंधुकडी) भाषा में है।
★ मीराबाईं:-
मेडता के ’कुडकी गॉंव’ में 1398 में रतनसिंह राठौड़ के घर जन्मी राव दूदा की पौत्री मीराबाई का विवाह सांगा के पुत्र भोजराज के साथ कर दिया गया। मीरा को राजस्थान की राधा कहते है। मीरा कृष्ण को पति रूप में पूजती थी। मीरा ने ’नरसी जी री हुण्डी’, ’रूक्मणी मगल’ व ’टीका राग गोविन्द’ की रचना की। मीरा के देवर विक्रमादित्य ने इन्हें घोर यातनायें दी। मीरा के गुरू रैदास थे। मीरा बाई का मंदिर मेडता व चितौड़ में है। आमेर का जगत शिरोमणि मंदिर भी मीरा मंदिर कहलाता है।
★ रामचरण जी:-
सोडा गांव (टोंक) मे वैश्य परिवार में जन्मेें रामचरण जी ने शाहपुरा में रामस्नेही सम्प्रदाय की नींव रखी। इस पंथ के अनुयायी गुलाबी रंग की पोशाक पहनते है। इनके गीतों का संकलन "अर्णभवाणी" नामक ग्रन्थ में है। इस सम्प्रदाय का ’फूलडोल’ (भीलवाड़ा) उत्सव चैत्र कृष्ण 2-5 तक आयोजित होता है। रामचरण जी के भी 52 शिष्य थे- जिनमें हरिप्रसाद, हरिनारायण प्रमुख है।
अन्य शाखायें - 1.रैण (नागौर)- दर्यावजी,2. खैडापा (जौधपुर)- रामदास जी, 3. सिंहथल (बीकानेर)- हरिराम दास जी।
★ लालदास जी:-
लालदास जी का जन्म धौलीदूब (अलवर) मे हुआ।लालदास जी मेव जाति के लकड़हारे थे। उन्होंने मुस्लिम संत गददन चिश्ती से शिक्षा ग्रहण की व अपने अपने अनुयायियों के लिये ’लालदासी सम्प्रदाय’ की स्थापना की। लालदास जी की प्रमुख पीठ नगला (भरतपुर) में है। यहां प्रतिवर्ष अश्विन शुक्ल 5-15 तक मेला भरता है। दीक्षा के दौरान इस सम्प्रदाय के शिष्य का काला मुँह करके गधे पर बिठाकर पूरे समाज में घुमाया जाता है तथा उसके बाद मीठी वाणी बोलने के लिए शरबत पिलाया जाता है।
★ चरणदास जी:-
डेहरा गांव (अलवर) में जन्मे चरणदास जी ने शुकदेव मुनि से दीक्षा ली व अपने अनुयायियों के लिये चरणदासी सम्प्रदाय की स्थापना की व अपने अनुयायियों के लिए 42 नियम बनाये। चरणदास जी ने 1739 के नादिरशाह के आक्रमण की भी भविष्यवाणी की। चरणदास जी के बचपन का नाम रणजीत सिंह था। इस सम्प्रदाय की प्रमुख पीठ दिल्ली मे है। इस पंथ के अनुयायी पीले रंग के वस्त्र धारण करते है।
★ गवरी बाई:-
1815 में डुंगरपुर में जन्मे गंवरी बाई को ’’बागड़ की मीरा’’ कहते है।
★ मावजी:-
डुंगरपुर के साबला ग्राम में जन्मे "निष्कलंक सम्प्रदाय" की स्थापना करने वाले मावजी ने वागड क्षेत्र में लासोडिया आन्दोलन का नेतृत्व किया। इनकी याद में बेणेश्वर नामक स्थान पर प्रतिवर्ष मेला भरता है।
★ बाल नंदाचार्य जी:-
गढ़मुक्तेश्वर में जन्में बाल नंदाचार्य जी ने मालकेतु पर्वत पर हनुमान जी की आराधना की व रघुनाथ मंदिर की प्रतिस्थापना की।इनकी प्रमुख पीठ लोहार्गल (झुन्झुनूं) में है। इन्होंने मुस्लिमों से धर्म की रक्षा के लिए साधुओं के सैन्य संगठन ’लश्करी दल’ की स्थापना भी की थी।
★ रज्जब जी:-
दादू के सबसे प्रिय शिष्य जाति से पठान रज्जब का जन्म सांगानेर में हुआ था।इनकी दादू जी से भेंट आमेर में हुई तथा उनके शिष्य बनकर विवाह ना करने की कसम खाई।रज्जब जी’ जीवन भर दूल्हे के वेश में रहे।
★ रामानन्दी सम्प्रदाय – ये वैष्णव सम्प्रदाय से संबंधित है। इसकी प्रथा पीठ गलता (जयपुर) में है। इसे 'उतरतोताद्रि' भी कहा जाता है। इस पीठ के संस्थापक कृष्णचन्द पयहारी (आमेर) थे। इस पीठ में राम की सगुण उपासना की जाती है।
★ निम्बार्क सम्प्रदाय :-
उपनाम - हंस, सनकादिक, नारद। प्रवर्तक - निम्बार्काचार्य। उपासना - राधाकृष्ण के युगल स्वरूप की। भारत में मुख्य पीठ - वृन्दावन, राजस्थान में मुख्य पीठ - सलेमाबाद,अजमेर।
★ निरंजन सम्प्रदाय:-
इस सम्प्रदाय के प्रवर्तक हरिदास निरंजनी थे। जिनका जन्म कापडोद, नागौर में हुआ था।वे सांखला राजपूत थे। इनकी प्रमुख पीठ- गाडा (नागौर) है।हरिदास जी ने भी डकैती को छोड़कर भक्ति मार्ग को अपनाया। इस कारण वे राजस्थान के वाल्मिकी कहे जाते हैं।
★ नाथ सम्प्रदाय:-
प्रवर्तक नाथ मुनि, वैष्णव व शैव सम्प्रदाय का संगम। चार प्रमुख गुरू मतसेन्द्र नाथ, गौरखनाथ, जालन्धरनाथ, कन्नीपाव। गौरखनाथ ने इसमें हठ योग प्रारम्भ। प्रधान मन्दिर/पीठ - महामन्दिर (जोधपुर)।
★ परनामी सम्प्रदाय:- कृष्ण भगवान को अपना अराध्य देव मानने वाले प्राणनाथ जी (जामनगर-गुजरात) ने परनामी सम्प्रदाय की स्थापना की ।प्राणनाथ जी की शिक्षाएँ एवं उपदेश "कुजलम स्वरूपं' नामक ग्रंथ में उल्लेखित है ।परनामी संप्रदाय मुख्य पीठ 'पन्ना'(मध्यप्रदेश)में है। राजस्थान में परनामी संप्रदाय के सर्वाधिक अनुयायी आदर्श नगर (जयपुर) में रहते है।जहाँ इनकी पीठ है।
★ समान बाई – अलवर के माहुन्द गाँव की निवासी थी। भक्त रामनाथ की पुत्री थी। इन्होंने आजीवन अपनी आँखों पर पट्टी बांधकर रखी तथा अन्य किसी को देखना नही चाहती थी। इन्होंने राधा-कृष्ण के मुक्तक पद्यों की रचना की।
★ करमेती बाई – यह खण्डेला के राज पुरोहित पशुराम काथडिया की बेटी थी। विवाह के पश्चात् विदा होने से पूर्व रात्रि में कृष्ण भक्ति में लीन होने के कारण वृन्दावन चली गई।वृन्दावन के ब्रह्मकुण्ड में आजीवन कृष्ण की भक्ति करती है।
★ करमा बाई – अलवर के गढीसामोर की विधवा ने आजीवन कृष्ण भक्ति में सिद्धा अवस्था प्राप्त की।
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