1818 की सहायक संधियां व परिणाम
सहायक संधि-
सहायक संधि का जन्मदाता लार्ड वेलेजली माना जाता है। अंग्रेजों ने देशी रियासतों पर अप्रत्यक्ष शासन करने के लिए एक कुत्सित संधि प्रस्ताव बनाया, जिसे 'सहायक संधि' नाम दिया गया। चूंकि मुग़लों के जाने के बाद मैराठों ने पूरे देश मे लूटपाट करके अत्याचार मचा दिया था, विशेष कर राजस्थान मराठों की लूटपाट का शिकार बना। पैसे लेकर कभी किसी को उत्तराधिकारी बना देना, बाद में उसके विरोधी से पैसे लेकर उसको गद्दी पर बिठवा देना और केवल और केवल लूटमार को अपना मकसद बनाने वाली मराठा शक्ति अब तनिक भी शिवाजी के लक्ष्यों से अभिप्रेरित रह गयी थी।
मराठो की भयंकर लूटपाट व बारंबार आक्रमणों ने राजपूती रियासतों में अशांति व अस्थिरता का माहौल पैदा कर दिया था। ऐसे में अंग्रेज जब सहायक संधि के रूप में राजनीतिक स्थिरता व सैनिक सुरक्षा का प्रस्ताव लेकर राजपूती राजाओ के पास आये तो उन्होंने आंख बंद कर के उसको स्वीकार कर लिया, जिसके कालांतर में भीषण दुष्परिणाम हुए।
अंग्रेजों से सहायक संधि करने वाले प्रमुख राज्य:-
★ भरतपुर (1803) - महाराणा रणजीत सिंह।
★ अलवर (1803) - महाराजा बख्तावर सिंह।
★ करौली (15 नवम्बर 1817) - हरवक्षपाल सिंह।
★ टोंक (18 नवम्बर 1817) - अमीर खां पिण्डारी।
★ कोटा (26 दिस.1817) - उम्मेद सिंह (प्रथम पूर्ण सहायक संधि)।
★ जोधपुर (6 जन.1818) - महाराजा मानसिंह।
★ उदयपुर (13जन.1818) - भीमसिंह द्वितीय।
★ बूंदी (1818) - विष्णु सिंह।
★ बीकानेर (1818) - सूरत सिंह।
★ किशनगढ (1818) - कल्याण सिंह।
★ जयपुर (1818) - सवाई जगतसिंह।
★ जैसलमेर (1818) - महारावल मुलराज।
★ सिरोही (1823) - महाराज शिवसिंह (अंतिम सहायक संधि)।
अंग्रेजों द्वारा राजपूती राज्यों से की गई सहायक संधियों की प्रमुख शर्तें:-
★ कम्पनी सरकार व रियासत के बीच मैत्री सदैव बनी रहेगी। एक का मित्र दूसरे का मित्र व एक का शत्रु दूसरे का शत्रु होगा।
★ कम्पनी सरकार रियासत की सुरक्षा का वचन देगी।
कम्पनी सरकार की अनुमति के बिना रियासत किसी भी अन्य शक्ति के साथ मैत्री, संधि या युद्ध नहीं कर सकेगी।
★ रियासत के शासक व उतराधिकारी अन्य राज्यों से अपने विवादों को कम्पनी की मध्यस्थता से सुलझायेंगे।
★ रियासत अब तक जितना खिराज मराठों को दे रही थी, उतना ही कम्पनी सरकार को भी देगी।
★ रियासत आवश्यकता पड़ने पर कम्पनी सरकार को सैन्य सहायता भी देगा।
★ कम्पनी सरकार रियासत के आन्तरिक मामलों मे किसी प्रकार का दखल नहीं देगी।
★ रियासत की सुरक्षा के लिये स्थापित कम्पनी की टुकड़ी का खर्चा रियासत से ही वसूल होगा।
★ रियासत किसी भी यूरोपीय या अमरिकी को अपने यहां सेवा मे रखने से पूर्व कम्पनी सरकार की पूर्व अनुमति लेगी।
कम्पनी की धाराओं से स्पष्ट है कि "राजपूतों ने अपनी स्वाधीनता बेचकर सुरक्षा खरीद ली थी।"
अंग्रेज सरकार (ईस्ट इण्डिया कम्पनी) से संधि के परिणाम:-
★ राजपूती राज्यों की बाहरी आक्रमणों से रक्षा।
★ राज्यों की आर्थिक दुर्दशा।
★ सामन्ती शक्ति का पतन, राजा के साथ मालिक - सेवक के सम्बंध हो जाना।
★ सामान्तों की प्रभावहीनता व कुण्ठा ग्रस्तता।
★ सामंतो की सैनिक आवश्यकता का अंत, सामंती निर्भरता का नगण्य हो जाना।
★ राजपूती राज्यों पर कंपनी के सैनिक नियन्त्रण की स्थापना।
★ कम्पनी की सर्वाच्चता की स्थापना।
★ शासको के भोग विलास में वृद्धि।
★ अत्यधिक करारोपण के कारण जनता की दुर्दशा।
★ कम्पनी द्वारा आन्तरिक मामलों(विवाह,उत्तराधिकार आदि) में अत्यधिक हस्तक्षेप।
★ राजपूती स्वाभिमान व पद मर्यादा का हनन।
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