ज्वार भाटा :- अर्थ, परिभाषा व प्रकार

ज्वार-भाटा :-
★ परिभाषा- चन्द्रमा व सूर्य के आकर्षण के कारण समुद्री जलस्तर के ऊपर उठने को ज्वार (tide) तथा नीचे उतरने को भाटा (ebb)कहते हैं।

ज्वार-भाटा की उत्पत्ति – ज्वार-भाटा की उत्पत्ति का कारण चन्द्रमा, सूर्य तथा पृथ्वी की पारस्परिक गुरुत्वाकर्षण शक्ति है। गुरुत्वाकर्षण द्वारा सम्पूर्ण पृथ्वी, सूर्य तथा चन्द्रमा की ओर खिंचती है। परन्तु इसका प्रभाव स्थल की अपेक्षा जल पर अधिक पड़ता है। यद्यपि सूर्य, चन्द्रमा से बहुत बड़ा है तो भी चन्द्रमा के गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव सूर्य के प्रभाव से लगभग दो गुना है। इसका कारण यह है कि सूर्य, चन्द्रमा की अपेक्षा पृथ्वी से बहुत अधिक दूरी पर स्थित है। 

ज्वार भाटा के प्रकार- ज्वार-भाटा मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं-
1. वृहत अथवा दीर्घ ज्वार – यह स्थिति पूर्णिमा तथा अमावस्या के दिन होती है। जब सूर्य, पृथ्वी एवं चन्द्रमा तीनों एक सीध में होते हैं। यह स्थिति युति -वियुुुति या सिजिगी कहलाती है।जब सूर्य व चन्द्रमा दोनों पृथ्वी के एक ओर होते हैं तो उसे युति कहते हैं तथा जब सूर्य और चन्द्रमा के बीच में पृथ्वी होती है,तो उसे वियुति कहते हैं। इस प्रकार युति की स्थिति अमावस्या को एवं वियुति की स्थिति पूर्णिमा को होती है। ऐसी स्थिति में पृथ्वी पर चन्द्रमा व सूर्य के सम्मिलित गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव पड़ता है,जिससे दीर्घ ज्वार का निर्माण होता है।
2. लघु अथवा निम्न ज्वार – ये साधारण ज्वार की अपेक्षा 20 प्रतिशत कम ऊँचे होते हैं। महीने के दो दिन शुक्ल पक्ष व कृष्ण पक्ष की अष्टमी को जब सूर्य, पृथ्वी एवं चन्द्रमा समकोण की स्थिति होते हैं लघु ज्वार उत्पन्न होते हैं। सूर्य तथा चन्द्रमा में गुरुत्वाकर्षण एक-दूसरे के विरुद्ध काम करते हैं। फलस्वरूप एक कम ऊँचाई वाले ज्वार का निर्माण होता है जिसे निम्न या लघु ज्वार कहते हैं।

ज्वार भाटे की समय अवधि:-
 एक दिन में सामान्यतः 2 बार ज्वारभाटा आता है।पृथ्वी का वह भाग, जो चन्द्रमा के सामने पड़ता है, वहां तीव्र आकर्षण बल के कारण दीर्घ ज्वार उत्पन्न होता है,जबकि जो भाग चन्द्रमा से सबसे अधिक दूरी पर स्थित होता है वहाँ अपकेन्दीय बल होता हैं  इसलिए वहाँ अपेक्षाकृत निम्न ज्वार उत्पन्न होता है।
              ज्वार-भाटा दिन में दो बार आता है, किन्तु एक ज्वार के बाद दूसरा ज्वार 12 घण्टे बाद न आकर 12 घण्टे 26 मिनट बाद और तीसरा ज्वार 24 घण्टे 52 मिनट बाद आता है। इसका कारण यह है कि पृथ्वी की परिभ्रमण गाति के साथ-साथ चन्द्रमा भी पृथ्वी के चारों ओर परिक्रमा करता है। फलत: पृथ्वी का वह स्थान जो चन्द्रमा के सामने है, पृथ्वी की दैनिक गति के कारण चक्कर लगाकर जब तक पुन: उसी स्थान पर 24 घण्टे में आयेगा, तब तक चन्द्रमा पृथ्वी की परिक्रमा में आगे निकल जाता हैं। अत: उस स्थान को पुन: चन्द्रमा के सामने पहॅुचने में 52 मिनट का अतिरिक्त समय लगता है। इसीलिये ज्वार के आने के समय में अन्तर आता है।

ज्वार भाटा के लाभ:-

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