पुरातात्विक स्त्रोत :- सिक्के व ताम्र पत्र

दान पत्र (ताम्र पत्र) -
★ जब शासक, सामंत, जागीरदार आदि किसी महत्वपूर्ण अवसर पर ब्राह्मणों, चारणों, या अन्य लोगों को भूमि, गांव, रत्न, सोना आदि दान में देते थे, तब वे इस दान या उपहार को तांबे के पत्तर पर उत्कीर्ण करवाकर देते थे, ताकि पीढ़ियों तक यह साक्ष्य उनके परिवार के साथ बना रह सके। 


★ ये ताम्रपत्र इतिहास के बारे में जानकारी देने में भी अहम भूमिका निभाते हैं। इनसे तत्कालीन राजा, शासक के नाम, विश्वास, आर्थिक स्थिति, साम्राज्य आदि के बारे में विश्वसनीय जानकारियां प्राप्त होती हैं।
★ ताम्र पत्र संस्कृत या स्थानीय भाषाओं में लिखे जाते थे इन पर स्थायी अनुदानों का अंकन है। कुछ प्रमुख ताम्रपत्रों का विवरण इस प्रकार है, यथा-
(1) आहड़ का ताम्र पत्र- (1206 ई.)-
इस ताम्र पत्र में गुजरात के सौलंकी राजा मूलराज्य से लेकर भीमदेव तक के राजाओं की वंशावली दी गई है। इससे यह पता चलता है कि भीमदेव के समय मेवाड़ पर गुजरात का अधिकार था।
(2) खेरोदा का ताम्र पत्र (1437 ई.)-
इसमें कुंभा द्वारा एकलिंग मंदिर में प्रायश्चित कर 10 हल भूमि उपाध्याय को दान देने व 1433 से 39 तक की कुंभा की विजयों का भी बखान है।
(3) चीकली ताम्र पत्र (1483 ई.)-
किसानों द्वारा दी जाने वाली लाग-बागों का विवरण।
(4) पुर का ताम्र पत्र (1535 ई.)
यह ताम्र पत्र महाराणा विक्रमादित्य के समय का है, जिसमें रानी कर्मावती द्वारा जौहर करने से पूर्व भूमि दान करने का उल्लेख मिलता है।



सिक्के - प्रमुख ऐतिहासिक स्त्रोत
★ राजस्थान में प्राचीन काल से वर्तमान काल तक के लाखों, तांबे, चांदी, लौहे और सोने के लेख, संख्या, आकृति वाले सिक्के प्राप्त हो चुके है। इन सिक्कों से विभिन्न शासकों के नाम, वंशावली, उनकी धार्मिक मान्यताओं, राज्य की आर्थिक स्थिति, राज्य की सीमाओं इत्यादि के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियाँ प्राप्त होती हैं।
★ राजस्थान में रैढ़ (टोंक) में उत्खनन से 3075 चांदी के पंचमार्क सिक्के मिले है, जो भारत के प्राचीनतम सिक्के है। इसी कारण रैढ को 'प्राचीन भारत का टाटानगर' भी बोला जाता है। पंचमार्क (धरण/आहत) सिक्के का समय छठी शताब्दी ई.पू. से दूसरी सदी ई. तक माना जाता है।

गुंरारा ग्राम(सीकर) से भी 2744 पंचमार्क सिक्के प्राप्त हुए हैं।पंचमार्क सिक्को पर उत्कीर्ण प्रमुख चित्र पेड़ , मछली , हाथी , अर्द्धचन्द्र , वृषभ इत्यादि है |

बैराठ (जयपुर) से 36 मुद्राएँ प्राप्त हुई है जिनमें से 8 पंचमार्क चांदी की व 28 युनानी प्राप्त हुई है। 28 में से 16 युनानी शासक ’मिनेण्डर’ की है। इससे यह प्रमाणित होता है कि बैराठ पर यूनानी शासकों का अधिकार रहा था।
गुप्तकालीन  सिक्के सर्वाधिक नगला (भरतपुर) से प्राप्त हुये है। यहां 1800 सिक्के प्राप्त हुए है। इनमें से सर्वाधिक चंद्रगुप्त के समय के है। 1962 में रैढ़ में भी 6 गुप्त कालीन मुद्राएँ मिली है।
★ राजस्थान में अलग अलग रियासतों में अलग- अलग सिक्के प्रचलित थे, यथा-
● झाड़शाही - जयपुर
● विजयशाही - जोधपुर
● अखैशाही - जैसलमेर
● गोपालशाही - करौली
● स्वरूपशाही - मेवाड़
● चान्दोड़ी - मेवाड़
● डब्बूशाही - मारवाड
● रामशाही - बूंदी
● तमन्चाशाही - धौलपुर
● मदनशाही - कोटा
● उदयशाही - डूंगरपुर
● रावशाही - अलवर

★ अंग्रेजो ने चांदी के 'कलदार' सिक्के मुख्य रूप से चलाए थे। जो आजाद होने तक चलते रहे।




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