चौहान वंश का इतिहास
सांभर व अजमेर के चौहान वंश-
उत्त्पति-
बिजौलिया शिलालेख - वत्स गौत्रीय ब्राह्मण।
नयनचंद्र सूरि कृत हम्मीर महाकाव्य - सूर्यवंशी।
पृथ्वीराज रासो - अग्निकुण्ड से उत्पन्न।
मूल निवास:-
गोपीनाथ शर्मा सहित अधिकांश विद्वानों के अनुसार चौहान जांगल देश व सपादलक्ष (सांभर) के रहने वाले थे, व उसकी राजधानी अहिच्छत्रपुर (नागौर) थी।
★ वासुदेव - सपादलक्ष के चौहानों के आदि पुरुष वासुदेव चौहान माने जाते है, जिन्होंने 551 ई. में सपादलक्ष के चौहान वंश की नींव डाली व 'सांभर झील' का निर्माण करवाया। चौहान वंश की प्रारंभिक राज. 'अहिच्छपुर' थी।
प्रारम्भ मे चौहान प्रतिहार शासकों के सामन्त थे। लेकिन वासुदेव का पौत्र गुवक प्रथम चौहान वंश के एक स्वतन्त्र शासक के रूप में उभरा। इसी वंश के चंदनराज की पत्नी रूद्राणी (आत्मप्रभा) पुष्कर में प्रतिदिन 1000 दीपक महादेव के सम्मुख जलाती थी।
★ अजयराज चौहान (1109-1133 ई.) - पृथ्वीराज के पुत्र अजयराज चौहान 1113 में अजमेर नगर की स्थापना की व 'अजयमेरू दुर्ग' का निर्माण प्रारम्भ करवाया। अजयराज का शासनकाल 'चौहान वंश का निर्माण काल' कहलाता है।
★ अर्णोराज चौहान (1133-55 ई.)- अजयराज के पुत्र अर्णोराज ने तुर्को को हरा कर राजस्थान से बाहर खदेड़ा। मालवा शासक जयसिंह चालुक्य ने अपनी पुत्री कंचन देवी का विवाह भी अर्णोराज के साथ किया। पुष्कर के 'वराह मंदिर' व अजमेर की 'आनासागर झील' का निर्माण भी अर्णोराज ने करवाया। देवबोध व धर्मघोष अर्णोराज के दरबारी विद्वान थे। अर्णोराज की हत्या 1155 ई. में उसी के पुत्र 'जग्गदेव'(पितृहन्ता) ने कर दी।
★ विग्रहराज चतुर्थ (1158-63)- अर्णोराज के उतराधिकारी विग्रहराज-चतुर्थ (बीसलदेव) को जयानक ने अपने ग्रंथ (पृथ्वीराज विजय) में "कवि बांधव" कहा है। विग्रहराज ने (तोमरो) को परास्त कर दिल्ली (ढिल्लिका) में (चौहान साम्राज्य) की स्थापना की। दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया। विग्रहराज ने 'बीसलपुर' (टोंक) नामक कस्बे को बसाया व अजमेर में एक संस्कृत पाठशाला 'सरस्वती कंठाभरण' बनवायी, जो बाद में अढाई दिन का झोंपड़ा मस्जिद में बदल गयी। विग्रहराज ने स्वयं ’हरिकेलि’ नामक नाटक तथा उसके दरबारी कवि सोमदेव ने ’ललित-विग्रहराज’ नामक ग्रन्थ की रचना की। विग्रहराज का काल 'चौहानों का स्वर्णकाल’ था।
★ पृथ्वीराज-तृतीय (1177-1192 ई.) - पृथ्वीराज चौहान का जन्म 1166 में अन्हिलपाटन (गुजरात) में हुआ। सोमेश्वर के पुत्र पृथ्वीराज को इतिहास में 'रायपिथौरा' व 'दलपुंगल' के नाम से भी जाना जाता है। पिता की अकाल मृत्यु के बाद पृथ्वीराज ने कुछ समय अपनी मां कर्पूरी देवी के संरक्षण में शासन किया। सोमेश्वर के सेनापति भुवनमल ने पृथ्वीराज की राजकार्यो में बहुत मदद की। पृथ्वीराज चौहान ने 1182 में महोबा के शासक परमर्दिदेव को परास्त किया, इस युद्ध में उसके वीर सेनापति आल्हा-ऊदल काम आये।
● कन्नौज के शासक जयचंद गहडवाल की पुत्री संयोगिता से पृथ्वीराज ने अजमेर में विवाह किया।
● पृथ्वीराज के शासन काल में ही चिश्ती सम्प्रदाय के प्रवर्तक ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती भारत आये।
● 1191 में पृथ्वीराज ने मुहम्मद गौरी को तराईन के प्रथम युद्ध में बुरी तरह हराया, लेकिन 1192 में तराईन के द्वितीय युद्ध में गौरी ने विश्वासघात करके पृथ्वीराज को हरा दिया व उसकी हत्या कर दी। तराईन के द्वितीय युद्ध में मेवाड़ के महाराणा 'समर सिंह' ने पृथ्वीराज की सहायतार्थ युद्ध में भाग लिया।
● पृथ्वीराज विजय के लेखक जयानक के अनुसार पृथ्वीराज चौहान ने जीवन पर्यन्त युद्धों के वातावरण में रहते हुये भी चौहान राज्य को सांस्कृतिक व साहित्यिक उन्नति प्रदान की है। पृथ्वीराज स्वयं अच्छा गुणी होने के साथ-साथ गुणीजनो का आश्रय दाता भी था।
● पृथ्वीराज के दरबारी कवि व विद्वान - (1) चंद्रवरदायी (पृथ्वीभट्ट ) (2) जयानक (3) विद्यापति गौड़ (4) वागीश्वर (5) विश्वरूप (6) जर्नादन (7) आशारूप (8) पद्मनाभ।
● तराईन के तृतीय युद्ध के बाद भारतीय राजनीति मे एक नया मोड़ आया, हालांकि इससे चौहानों की शक्ति क्षीण हुई परन्तु फिर भी इसकी अनेक शाखायें रणथम्भौर, जालौर, हाड़ोती, नाडौल, चंद्रावती व आबू मे स्थापित हुई व राजपूत शक्ति की धुरी बनी रही।
रणथम्भौर का चौहान वंश -
पृथ्वीराज चौहान के पुत्र 'गोविन्द राज' के द्वारा 1194 में इस वंश की नींव डाली गयी। इस वंश के शासक वीरनारायण को विष देकर इल्तुतमिश ने मरवा दिया था।
★ हम्मीर देव चौहान (1282-1301 ई.) -
चौहान शासक जयसिम्हा (जय सिंह) की मृत्यु के बाद उसका पुत्र हम्मीर देव 1282 में शासक बना।हम्मीर ने 1291-92 में जलालुद्दीन खिलजी को दो बार परास्त किया।
● हम्मीर के काल की विस्तृत जानकारी निम्न ग्रंथों से मिलती है, यथा-
- नयनचंद्र सूरि कृत ’हम्मीर महाकाव्य’
- जोधराज कृत ’हम्मीर रासो’
- चंद्रशेखर कृत ’हम्मीर हठ’ व ’सुर्जन चरित’
- विजय सा कृत 'हमीरदेेेव चौसाईं’
- राजरूप कृत ’हम्मीर राछाड़ा’
● हम्मीर देव द्वारा अलाउद्दीन खिलजी के विरूद्ध मंगोल भगोड़ों मीर मोहम्मद शाह व केहब्रु को शरण देना दोनों के बीच युद्ध का कारण बना।
● इसी के चलते अलाउद्दीन ने रणथम्भौर पर आक्रमण किया। दिल्ली सुल्तान खिलजी द्वारा अपने सेनापतियों नुसरत खां, उलुग खां व अलप खां के नेतृत्व में 1301 में रणथम्भौर पर हमला हुआ। हम्मीर व राजपूतों ने केसरिया किया व काम आये, उधर हम्मीर की पत्नी 'रंगदेवी’ के जौहर के साथ राजस्थान के इतिहास का ’प्रथम साका’ सम्पन्न हुआ।
● हम्मीर की हार का प्रमुख कारण सेनापति रतिपाल, सेनानायक रणमल व सुरजन शाह का विश्वासघात था।
युद्ध के दौरान हम्मीर की पुत्री देवलदेवी ने भी पदमा तालाब में कूद कर जल जौहर किया।
● अलाउद्दीन ने इस युद्ध मे विजय के बाद कहा था - ’कुफ्र का गढ इस्लाम का गढ हो गया है।'
जालौर का चौहान वंश-
जालौर के चौहान वंश की स्थापना 'कीर्तिपाल चौहान' (कीतू) ने की। कीतू द्वारा स्वर्णगिरी पर्वत श्रृंखलाओं के बीच में अपना राज्य स्थापित करने के कारण यहां के चौहान ’सोनगरा’ चौहान कहलाये।
★ कान्हड देव चौहान (1305-11)-
कान्हड़देव चौहान के सेनापति ’जेता देवड़ा’ ने सोमनाथ से लौटती खलजी सेना पर धावा बोल सारा धन लूट लिया। कुपित अलाउद्दीन ने जालौर पर आक्रमण की योजना बनाई। जालौर विजय के लिये अलाउद्दीन को पहले सिवाणा जीतना जरूरी था। इसलिये 1308 में खजली की कमालुद्दीन गर्ग के नेतृत्व वाली सेना ने शीतलदेव चौहान को हराकर व ’भायला पंवार’ को अपनी ओर मिला कर सिवाणा साके के बाद सिवाणा को जीत लिया। सिवाणा दुर्ग का नाम ’खैराबाद’ कर दिया गया।
● सिवाणा दुर्ग पर आक्रमण करके लौटी खलजी सेना को कान्हड़ देव के नेतृत्व में राजपूती सेना ने 'मालकाना के युद्ध' में परास्त किया। खलजी के सेनापति शम्स खॉं को बंदी बना लिया। मालकाना की हार से कुपित अलाउद्दीन 1311 में स्वयं ससैन्य जालौर आ पहुॅंचा।
● अलाउद्दीन ने 1311 में मलिक नाइब के नेतृत्व में जालौर पर धावा बोला। कान्हड़देव, उसके पुत्र वीरमदेव व राजपूतों ने केसरिया किया व वीरगति को प्राप्त हुए। वीरांगनाओं ने जौहर किया। इस प्रकार ’जालौर का साका’ हुआ। कान्हड़देव की हार का एक प्रमुख कारण ’बीका दहिया’ का विश्वासघात था , जिसकी हत्या बाद में उसी की पत्नी हीरान्दे ने कर दी थी। युद्ध के बाद अलाउद्दीन ने जालौर में एक मस्जिद बनवाई व जालौर का नाम बदलकर 'जलालाबाद' रख दिया।
नाडौल के चौहान-
चौहानों की नाडौल शाखा का संस्थापक ’लक्ष्मण चौहान’ था, जो शाकंम्भरी नरेश वाक्पति का पुत्र था। उसने 960 ई. में नाडौल में चौहान वंश की नींव डाली। आशापुरा माता नाडौल के चौहानों की कुलदेवी है। 1200 में इनका वंश जालौर के चौहानों में मिल गया।
सिरोही के देवड़ा (चौहान)-
सिरोही के देवड़ा चौहानों का संस्थापक ’राव लुम्बा’ को माना जाता है, जो जालौर के सोनगरा चौहानों का वंशज था। लुम्बा ने 1311 में आबू चंद्रावती के परमारों को परास्त कर चौहान वंश की नींव डाली। लुम्बा के पश्चात् क्रमशः तेजसिंह, कान्हड़देव,सामंत सिंह, सलखा तथा रायमल शासक बने। रायमल के पुत्र शिवभान ने ’शिवपुरी’ नामक नगर बसाया व वहां एक दुर्ग भी बनवाया। शिवभान के पुत्र ’सहसमल’ ने 1425 में शिवपुरी से 2 मील दूर सिरोही नगर बसाया। सहसमल के बाद लाखा(1451-83) एवं प्रतापी शासक हुआ। लाखा के पश्चात् जगमाल (पृथ्वीराज को जहर दिया) शासक बना। बाद के शासकों में सिरोही के राव सुरताण ने अकबर का विरोध किया। अंततः शिवसिंह ने 1823 मे अंग्रेज सरकार से संधि कर ली।
हाडा चौहान वंश :-
◆ बूंदी के चौहान-
● अरावली पर्वतमाला की गोद में बसा बूंदी शहर का नाम मीणा बूँदा के नाम पर बूंदी पड़ा | रणकपुर लेख में बूंदी का नाम 'वृन्दावती' मिलता है । बूँदा के पोते जेता मीणा को हराकर हांडा चौहान "राव देवा" ने यहाँ 1241 ई के चौहान वंश का शासन स्थापित किया।
●संस्थापक राव देवा चौहान के बाद समर सिंह,राव नरपाल जी, राव हामा जी (हम्मीर),राव वीर सिंह,राव बेरीशाल,राव भांडा जी,राव नारायण ,सुरजमल हाडा ,राव सूरताण,सुर्जन हाडा,राव भोज,राव रतन सिंह,शत्रुशाल हाडा,भाव सिंह,अनिरुद्ध हाडा ,राव राजा बुद्ध सिंह,महाराव उम्मेद सिंह,महाराजा राव विष्णु सिंह,महाराव राजा रामसिंह ,महाराव राजा रघुवीर सिंह,महाराजा राव ईश्वर सिंह,महाराव राजा बहादुर सिंह शासक हुए।
●बूंदी के शासक लगभग 11 पीढ़ी तक मेवाड़ के अधीन रहें।
● राव जैत सिंह ने कोटिया भील को पराजित कर कोटा को बूंदी राज्य में मिलाकर उसे अपनी दूसरी राजधानी बनाया।
● राव सुर्जन हाडा(1554-85)-
ये अपनी दानशीलता के लिए प्रसिद्ध थे। इनके दरबारी कवि चन्द्रशेखर ने “सुर्जन चरित्र” की रचना की ।1569 में सुर्जन हाडा ने अकबर की अधीनता स्वीकार की।
●1631 ईसवी में मुगल बादशाह शाहजहां ने कोटा को बूंदी से स्वतंत्र कर दिया था। बूंदी के शासक रतन सिंह के पुत्र माधव सिंह को वहां का शासक बना दिया।
●रावराजा बुध्दसिंह- बुद्धसिंह अनिरुद्ध का ज्येष्ठ पुत्र था जो 10 वर्ष की आयु में बूँदी राज्य का स्वामी बना। राजस्थान में मराठों का सर्वप्रथम प्रवेश बूंदी राज्य में हुआ।जब 1734 में वहां के शासक बुद्धसिंह की कछवाही रानी आनंद कुँवरी ने अपने पुत्र उमेद सिंह के पक्ष में मराठा सरदार होल्कर को आमंत्रित किया।
●बाद में 1818 ईस्वी में बूंदी के शासक विष्णु सिंह ने मराठों से सुरक्षा हेतु ईस्ट इंडिया कंपनी से संधि कर ली थी और बूंदी की सुरक्षा ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथ में चली गयी देश की स्वाधीनता के बाद बूंदी का विलय राजस्थान संघ में हुआ।
◆ कोटा के चौहान:-
प्रारंभ में कोटा बूंदी रियासत का एक भाग था शाहजहां के समय 1631 में बूंदी नरेश राव रतन सिंह के पुत्र माधव सिंह को कोटा का अलग राज्य देकर उसे बूंदी से अलग कर दिया था ।तभी से कोटा स्वतंत्र राज्य के रूप में अस्तित्व में आया।
●राव माधो सिंह के बाद के राजाओं में राव मुकुन्द सिंह ,राव जगत सिंह ,राव किशोर सिंह ,राव रामसिंह ,महाराव भीमसिंह ,महाराव अर्जुन सिंह,महाराव दुर्जनशाल,महाराव अजीत सिंह,महाराव शत्रुशाल,महाराव गुमान सिंह,महाराव उम्मेद सिंह,महाराव किशोर सिंह,महाराव रामसिंह,महाराव शत्रुशाल II,महाराव उम्मेदसिंह II,महाराव भीमसिंह शासक हुए।
●कोटा पूर्व में कोटिया भील के नियंत्रण में था जिसके नाम पर इसका नाम कोटा पड़ा (इसे बूंदी के चौहान वंश के संस्थापक देवा के पौत्र जैत्र सिंह ने मार कर अपने अधिकार में कर लिया था)
●मुकुन्द सिंह हाडा ने “अबली मीणी का महल” बनाया जिसे हाडौती का ताजमहल कहते है।
●भीमसिंह को बहादुरशाह प्रथम ने “महाराव” की उपाधि दी। भीमसिंह ने अन्तिम दिनों में वैराग्य धारण कर कृष्ण भक्त होने के कारण अपना नाम “कृष्णदास” रख लिया।
●महाराव शत्रुशाल -
इनके समय में 1761ई में भटवाडा का युद्ध हुआ। इसमें एक तरफ जयपुर के माधोसिंह की सेना व दूसरी तरफ शत्रुशाल की सेना थी, जिसकी अगुवाई झाला जालिम सिंह कर रहे थे। इसमे जयपुर की हार हुई। इस युद्ध के बाद कोटा राज्य में जालिम सिंह का दबदबा हो गया।
●दिसंबर 1817 ईसवी में यहां के फौजदार जालिम सिंह झाला ने कोटा राज्य को ईस्ट इंडिया कंपनी से संधि कर ली है।
●झालावाड़ राज्य:- महारावल झाला मदन सिंह ,जो कि कोटा का दीवान और फौजदार था तथा झाला जालिम सिंह का पुत्र था को 1837 में कोटा से अलग कर झालावाड़ का स्वतंत्र राज्य दे दिया गया। इस प्रकार झाला के उतराधिकारियों के लिए एक स्वतंत्र राज्य झालावाड़ की स्थापना हुई यह राजस्थान मे अंग्रेजों द्वारा बनायी गई आखिरी रियासत थी। इसकी राजधानी झालरापाटन बनाई गई।
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