आमेर का कच्छवाहा वंश

         आमेर व जयपुर का  कच्छवाहा वंश

एक मान्यता के अनुसार कच्छवाह स्वयं को भगवान राम व कुश का वंशज मानते है। ये मूलतः ग्वालियर व नरवर के निवासी थे, जो जयपुर के आस-पास आकर बस गये। 

★ दुलहराय 'तेजकरण' - यह कच्छवाहा वंश का प्रथम शासक था, जिसने चौहान राजकुमारी से विवाह कर दौसा दहेज में प्राप्त किया व दौसा को राजधानी बनाया। 1137 में इसने बडगूजरों को परास्त कर ढ़ुुढ़ाड राज्य की स्थापना की व जमवा रामगढ को अपनी राजधानी बनाया, व वहां जमवाय माता मंदिर बनवाया। 


★ कोकिलदेव- दुलहराय के पौत्र कोकिलदेव ने 1207 में आमेर के मीणाओं को हराकर आमेर पर अधिकार कर लिया व उसे अपनी राजधानी बनाया, जो 1727 तक कच्छवाहों की राजधानी रही। 

★ कोकिलदेव के बाद पंचनदेव, मालसी, जिलदेव, रामदेव, किल्हण, कुन्तल,जोनसी, उदयकरण, नरसिंह, उदरण, चंद्रदेव आदि शासक हुए। 

★ पृथ्वीराज(1503-1527):-                                                     पृथ्वीराज मेवाड़ के महाराणा सांगा का सामन्त था, और खानवा के युद्ध में सांगा की तरफ से लड़ा व खेत रहा। गलता जी तीर्थ की स्थापना करने वाले रामानुजी सन्त 'कृष्ण दास पयहारी' का अनुयायी था। पृथ्वीराज पर उसकी पत्नी बालाबाई का विशेष प्रभाव था। उसी के कहने पर ही इसने अपने छोटे बेटे पूरणमल को अपना उत्तराधिकारी बनाया। पृथ्वीराज ने ’बारह कोटड़ी व्यवस्था’ करके अपने बारह पुत्रों में आमेर राज्य का विभाजन किया। पृथ्वीराज के ही एक पुत्र सांगा ने 'सांगानेर' बसाया। 

★ पृथ्वीराज के बाद आमेर की स्थिति संतोषजनक नहीं रही। पृथ्वीराज के बाद उसके दोनों पुत्रों पूरणमल व भीमदेव के बीच गद्दी के लिये कलह हुई। पृथ्वीराज के बाद क्रमशः पूरणमल (1527-34) व भीमदेव (1534-36) शासक बने।

★ रतनसिंह (1536-47)- भीमदेव की मृत्यु के बाद उसका बेटा रतनसिंह शासक बना, रतनसिंह को उसके चाचा भारमल ने जहर देकर मार दिया। बाद में रतनसिंह के भाई आसकरण को गद्दी से उतारकर भारमल स्वयं गद्दी पर बैठा।

★ भारमल (बिहारीमल) -(1548-74)                                        चारों तरफ से उत्तराधिकार संघर्ष में घिरे भारमल ने 1562 में अजमेर जाते समय अकबर को रास्ते में मिलकर उसकी अधीनता स्वीकार कर ली व सांभर में अपनी पुत्री हरखा बाई का विवाह अकबर से करवा दिया। हरखा बाई इतिहास में 'मरियम उज्जमानी' के नाम से जानी जाती है। 'सलीम' जहांगीर इन्हीं के दाम्पत्य का परिणाम था।  अकबर ने भारमल को मुगल दरबार में 5 हजार मनसब व अमीर उल उमरा व राजा की उपाधि प्रदान की। भारमल ने 1562 में ही अपने पुत्र भगवान दास व पोते मानसिंह को भी अकबर की सेवा में भेज दिया था।


★ भगवान दास (1573-89)-भारमल की मृत्यु के बाद भगवानदास शासक बना। इसने अपनी 'पुत्री मानबाई' (सुल्ताननिशां) का विवाह जहांगीर से किया। खुसरो मानबाई का ही पुत्र था। 1589 में लाहौर में इनका देहांत हुआ।


★ मानसिंह प्रथम (1589-1614)-                                                      1589 में भगवान दास की मृत्यु के बाद शासक बना। यह 12 वर्ष की आयु में ही मुगल सेवा में चला गया व जीवन पर्यन्त इसने मुगलों की सेवा की। अकबर ने इसे काबुल, बिहार व बंगाल का सूबेदार बनाया। मानसिंह ने बंगाल व उड़ीसा की फतह की। अकबर ने मानसिंह के 7 हजार का मनसब दिया। 


मानसिंह ने अपने पुत्र जगतसिंह की पुत्री का विवाह जहांगीर से किया जो मुगल हरम में तीसरी आमेर की राजकुमारी थी। मानसिंह विद्वानो का अन्नदाता भी था। मुरारीदास, जगन्नाथ, हरिनाथ व सुंदरदास इसके दरबारी रत्न थे। अकबर ने मानसिंह को ’फर्जन्द’ (पुत्र) की उपाधि भी प्रदान की। संत दादू ने दादूवाणी की रचना मानसिंह के काल में ही की थी। मानसिह ने आमेर का शिलादेवी व जगत शिरोमणि मंदिर बनवाया। मानसिंह ने बंगाल में अकबरपुर व बिहार में मानपुर नगर बसाया। मानसिंह ही मीनाकारी की कला को लेकर आये थे।1614 में दक्षिण भारत मे सैन्य अभियान के दौरान 'एलिचपुर' (महाराष्ट्र) में मानसिंह की मृत्यु हो गयी।

★ मानसिंह के बाद भाव सिंह (1614-21) और तत्पश्चात् जयसिंह प्रथम आमेर का शासक बना।

★ मिर्जा राजा जयसिंह (1621-67)-                    मिर्जा राजा जयसिंह ने मुगल बादशाह जहांगीर, शाहजहां व औरंगजेब की सेवा की। इसने अहमदनगर, जाटों, मराठों, बीजापुर व गोलकुण्डा के विरूद्ध सफलता प्राप्त की। कंधार में अभूतपूर्व वीरता का परिचय देने के कारण शाहजहां ने इसे 'मिर्जा राजा' की उपाधि प्रदान की। दौराई के युद्ध 1658 में जयसिंह ने औरंगजेब के साथ दारा शिकोह को पराजित किया। 

औरंगजेब ने मिर्जा राजा जयसिंह को दक्षिण भारत में मराठों के विरूद्ध नियुक्त किया। जयसिंह ने पुरंदर में शिवाजी को पराजित कर मुगलों से सन्धि करने के लिए विवश कर दिया।  1665 में शिवाजी व मुगलों के बीच 'पुरंदर की संधि’ सम्पन्न हुई। मिर्जा राजा ने लगभग 46 वर्षों तक शासन किया। 1667 में 'बुरहानपुर' में जयसिंह का देहान्त हो गया। जयसिंह के दरबारी बिहारी ने 'बिहारी सतसई' व रामकवि ने 'जयसिंह चरित्र' लिखा। जयसिंह ने जयगढ किले का निर्माण शुरू करवाया था।

★ जयसिंह के बाद रामसिंह (1667-82) व बिशनसिंह 1682-1700 शासक बने। 

★ सवाई जयसिंह (1700-1743)-                                             1700 में जयसिंह आमेर का शासक बना, जिनको औरंगजेब ने उसकी वाकपटुता के कारण ’सवाई’ की उपाधि प्रदान की गई। औरंगजेब की मृत्यु के बाद उतराधिकार युद्ध जाजम युद्ध 1707 में जयसिंह ने आजम का साथ दिया। इस युद्ध में विजयी मुअज्जम (बहादुरशाह-प्रथम) सवाई पर क्रुद्ध था। सवाई जयसिंह को सबक सिखाने के लिये बहादुर शाह ने विजय सिंह को गद्दी पर बिठा दिया व आमेर को खालसा घोषित कर उसका नाम ’मोमिनाबाद’ रख दिया।     

                                      लेकिन जयसिंह ने मारवाड़ के अजीत सिंह व मेवाड़ के अमर सिंह-द्वितीय से सहायता लेकर आमेर को पुनः जीत लिया। सवाई जयसिंह  कुशल राजनीतिज्ञ, कुटनीतिज्ञ, गणितज्ञ, खगोलविद, साहित्यकार, साहित्यकारों का प्रश्रयदाता, महान योद्धा, निर्माता व विद्वान था। इसने 1727 में नवग्रह सिद्धांत के आधार पर जयपुर नगर बसाया व इसे अपनी राजधानी बनाया। जयपुर का प्रधान शिल्पी 'विद्याधर भट्टाचार्य' था। सवाई जयसिंह ने 5 वैद्यशालायें- दिल्ली, जयपुर, उज्जेन, बनारस व मथुरा-बनवायी। सवाई जयसिंह ने जयपुर मे जन्तर-मन्तर का निर्माण करवाया। जिसमें 'सम्राट' नामक विश्व की सबसे बड़ी घड़ी भी बनवाई।  उसने सिसोदिया रानी का महल, चंद्रमहल व सिसोदिया रानी का बाग आदि का निर्माण करवाया। जयगढ का विस्तार किया व एशिया की सबसे बड़ी तोप ’जयबाण’ बनवायी। 1734 में मराठा आक्रमणों से सुरक्षा हेतु ’नाहरगढ’ का किला बनवाया। सवाई जयसिंह ने नक्षत्र विद्या पर ’जीज मोहम्मदशाही’ नामक सारणीयों का एक सैट तैयार करवाया व ’जयसिंह कारिका’  नामक ग्रंथ भी लिखा। जयपुर के सिटी पैलेस में पोथीखाना (चित्रकला संग्रहालय) बनवाया। 1740 में अश्वमेघ यज्ञ (पुण्डरीक रत्नाकर) करवाने वाले अंतिम हिन्दू राजा थे। इन्होंने राजपुताना में सर्वप्रथम विधवा पुनर्विवाह की ओर ध्यान दिया। सवाई जयसिंह ने 7 मुगल बादशाहों को सेवा दी। ’जयसिंह कल्पद्रुम’ सवाई के दरबारी पुण्डरीक रत्नाकर का लिखा ग्रंथ है। सवाई जयसिंह के दरबार मे कई गुणीजन रहते थे। यथा- पुण्डरीक रत्नाकर, सम्राट जगन्नाथ (सवाई जयसिंह के गुरू), ज्योतिषराज केवलराम, कृष्णभट्ट । 

1743 में सवाई जयसिंह की मृत्यु के बाद ईश्वरी सिंह व माधोसिंह में उतराधिकार संघर्ष हुआ। 

★ सवाई ईश्वरी सिंह (1743-50)-  ईश्वरी सिंह ने मल्हार राव होलकर की मदद से 'राजमहल के युद्ध' (1747) में अपने भाई माधो सिंह को हराकर गददी हासिल की। इसी विजय के उपलक्ष्य में ईश्वरी सिंह ने जयपुर में ईसरलाट (सरगासूली) का निर्माण करवाया था। ईश्वरी सिंह ने 1750 में मराठों की रंगदारी, लगातार चौथ की मांग से तंग आकर आत्म हत्या कर ली।   

★ सवाई माधोसिंह (1750-68)-  जब मराठे शेष चौथ के लिए माधोसिंह के पास जयपुर आये तो माधोसिंह ने 10 जनवरी 1751 को माधोसिंह ने परकोटे के सभी गेट बंद कर 5000 मराठों को मौत के घाट उतार दिया।                   

                                               माधोसिंह ने 1763 में रणथम्भौर के पास 'सवाई माधोपुर' नगर बसाया। मोती डूंगरी महल व गणेश मंदिर बनवाया। नाहरगढ में 9 पासवानों हेतु एक जैसे 9 महल बनवाये। इन्होंने चाकसू का शीतलामाता मंदिर बनवाया। 

★ सवाई प्रतापसिंह (1768-1803)-                                           सवाई प्रतापसिंह ने 1787 में तूंगा के युद्ध में मराठा सरदार महादजी सिन्धियां को परास्त किया।

 उस्ताद लालचंद की देखरेख में 1799 में पांच मंजिला 'हवामहल' बनवाया। जिसे ’विण्डस आफ पैलेस’ कहते है। प्रतापसिंह के दरबार में 22 विद्वानों की मण्डली रहती थी, जिसे ’’गंधर्व बाईसी’’ कहते थे, इनमें ब्रजपाल भट्ट, उस्ताद चांद खां, द्वारिकादास व गणपत भारती प्रमुख थे। जयपुर में एक संगीत सम्मेलन बुलवाकर ’राधा गोविन्द संगीत सार’ग्रंथ की रचना करवाई जिसके काव्य रचयिता ब्रजपाल भट्ट ही थे। वेे 'ब्रज निधि' नाम से ब्रज भाषा में काव्य रचना भी करते थे। ब्रजनिधि ग्रंथावली इनकी रचनाओं का संग्रह है। उनके शासन काल में माचेडी के नरूका 'राव प्रताप सिंह' ने अव्यवस्था का लाभ उठाकर मेवात व अलवर-भरतपुर के कुछ भागों को मिलाकर अलवर राज्य की नींव डाली। 

★ सवाई जगत सिंह (1803-18)-इसने राजकुमारी कृष्णाकुमारी के लिए 'गिगोली के युद्ध'(1807) में मारवाड़ के मानसिंह को हराया। 1818 में हार से संधि कर ली। इसकी मृत्यु के बाद जयसिंह-तृतीय शासक बना। 

★ सवाई रामसिंह-द्वितीय (1835-80)-                                जयसिंह-तृतीय के बाद रामसिंह-द्वितीय की अल्पव्यस्कता के चलते अंग्रेजों ने प्रशासन संभाला। रामसिंह ने 1868 में 'रामनिवास बाग' बनवाया। 1876 में प्रिंस आफ वेल्स के आगमन पर पूरे जयपुर को गुलाबी रंग में रंगवाया।जयपुर के लिये प्रथम बार 'पिंक सिटी' प्रयुक्त किया। रामसिंह ने ही प्रिंस आफ वैल्स की याद में ’अल्बर्ट हॉल’ का शिलान्यास करवाया। अल्बर्ट हॉल का वास्तुकार स्टीवन जैकब था।

 1857 में सवाई रामसिंह ने ही ’राजस्थान स्कूल ऑफ आर्टस’ (मदरसा- ए-हुनरी) की स्थापना की व उतर भारत का पहला रंगमंच ’राम प्रकाश थियेटर’ भी बनवाया। 

★ सवाई माधोसिंह-द्वितीय (1880-1922)- ईसरदा से गोद लिये माधोसिंह ने सिटी पैसेल में मुबारक महल बनवाया। 

★ सवाई मानसिंह-द्वितीय (1922-1970) में माधोसिंह-द्वितीय का दत्तक पुत्र मानसिंह-द्वितीय गद्दी पर बैठा। इनकी दो पत्नी थी- मरूधर कंवर व गायत्री देवी(कूच बिहार की राजकुमारी)।


पोलो खिलाड़ी व लेफ्टिनेंट जनरल रहे मानसिंह ने अपने प्रधानमंत्री मिर्जा ईस्माइल के सहयोग से जयपुर को आधुनिक स्वरूप प्रदान किया व अनेक संस्थान स्थापित किये, जैसे- सवाई मानसिंह अस्पताल, मेडिकल कॉलेज, स्टेडियम, महाराजा स्कूल आदि। 1970 में पॉलो खेलते समय गिर जाने से इनकी मृत्यु हो गयी।

★ सवाई भवानी सिंह (1970-2011)- मानसिंह की मृत्यू के बाद भवानी सिंह गद्दी पर बैठे। इन्होंने लंबे समय तक भारतीय सेना में कार्य किया। 1971 के भारत पाक युद्ध मे अद्वितीय पराक्रम दिखाने के कारण 'महावीर चक्र' से भी सम्मानित किए गए।सिरमुर की राजकुमारी पद्मिनी देवी से इनका विवाह हुआ, जिससे उनकी एक ही संतान है - दीया कुमारी,जो कि वर्तमान में लोकसभा सांसद भी है। 















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