राजस्थान में दुर्ग स्थापत्य
राजस्थान में दुर्ग स्थापत्य:-
राजस्थान के शासकों, सामंतो व जागीरदारों ने दुर्गाे का निर्माण समय समय पर करवाया।दुर्गाे का निर्माण निवास, सुरक्षा, सामग्री संग्रहण के लिए और आक्रमण के समय जनता, पशु तथा सम्पत्ति के संरक्षण हेतु किया जाता था। अधिकांश दुर्गों का निर्माण सामरिक महत्व के स्थानों पर किया गया ताकि आक्रमणकारियों से प्रदेश की सुरक्षा हो, तथा व्यापारिक मार्ग सुरक्षित रह सकें। दुर्ग निर्माण उँची एवं चैड़ी पहाड़ियों पर किया जाता था, जहाँ कृषि एवं सिंचाई के साधन उपलब्ध रहते थे।दुर्गों की प्रमुख विशेषताएँ थी -सुदृढ़ प्राचीरे,विशाल परकोटा,अभेद्य बुर्जे, दुर्ग के चारों ओर गहरी नहर या खाई, दुर्ग के भीतर शास्त्रागार की व्यवस्था, जलाशय, मन्दिर निर्माण, पानी की टंकी की व्यवस्था,अन्नभण्डार की स्थापना, गुप्तप्रवेश द्वार रखा जाना, सुरंग निर्माण, राजप्रासाद एवं सैनिक विश्राम गृहों की व्यवस्था आदि।
दुर्गो के प्रकार:-शुक्रनीति में 9 प्रकार के दुर्ग बतलाये गए हैं,यथा:- 1. ऐरण दुर्ग - ऐसा दुर्ग जिसका मार्ग खाई, कांटों व पत्थरों से दुर्गम बना हो, यथा- रणथम्भौर दुर्ग।
2. पारिख दुर्ग - जिसके चारों ओर खाई हो - लोहागढ दुर्ग (भरतपुर)।
3. पारिध दुर्ग - जिसके चारो और ऊँची-ऊँची व चौड़ी दीवारों युक्त परकोटा हो,यथा- माधेराजपुरा गढ, चौमूं गढ, चितौड़गढ़।
4. धान्वन दुर्ग - जिसके चारों ओर रेत के टीले व मरूस्थल हो, यथा - बीकानेर, भटनेर, जैसलमेर, नागौर, पोकरण, बाड़मेर व चुरू दुर्ग।
5. वन दुर्ग - चारों ओर वनों से घिरा हो,यथा- रणथम्भौर व सिवाणा दुर्ग।
6. जल दुर्ग -जिसके चारों ओर जलराशि हो, यथा-गागरोण दुर्ग व भैंसरोडगढ़।
7. गिरी दुर्ग - जो दुर्ग एकांत में पहाड़ी पर बना हो, कुंभलगढ़, चितौड़गढ़, आमेर, तिमनगढ़, बयाना, तारागढ व खण्डार दुर्ग।
8. सैन्य दुर्ग - जो व्यूह रचना में वीरों से अभेद्य हो- सर्वश्रेष्ठ दुर्ग।
9. सहाय दुर्ग - वह दुर्ग जो सदा अनुकूल भाई बांधवों से युक्त हो।
राजस्थान के प्रमुख दुर्ग:-
★ चितोड़गढ़ दुर्ग - गभीरी व बेडच नदियों के संगम पर चितौड़गढ दुर्ग का निर्माण चित्रांग मौर्य ने करवाया। यह दुर्ग व्हेल मछली के समान आकार वाला व ’चित्रकुट पर्वत’ पर बना हुआ है। इसे राजस्थान का गौरव व ’गढ़ों का सिरमोर’ कहा जाता है।इसके बारे में एक आम कहावत है- "गढ तो चितौड़गढ़ बाकी सब गढ़ैया।’’इस दुर्ग तक पहुंचने के लिए एक घुमावदार रास्ते में से चढ़ाई करनी पड़ती है इसमें सात अभेद्य प्रवेश द्वार है इसका मुख्य व पहला प्रवेश द्वार पाटन पोल है । इसके बाद क्रमशः भैरवपोल, हनुमानपोल, गणेशपोल, जोडलापोल, लक्ष्मण पोल व राम पोल है।
यह राजस्थान का सबसे बड़ा लिविंग फोर्ट है, जहां तीन साके (1303, 1534, 1568) हुए है। दुर्ग के प्रमुख महलों में रानी पदिमनी का महल, नवलखा भण्डार, विजय स्तंभ, कीर्तिस्तंभ, मीराबाई का मंदिर, सतबीस देवरी का मंदिर व श्रृंगार चंवरी मंदिर, कालिका माता मंदिर व संत रैदास की छतरी स्थित है।
★ भैंसरोडगढ़ दुर्ग(चित्तौड़गढ़)-
चम्बल व बामनी नदी के किनारे स्थित यह दुर्ग भैंसासिंह व्यापारी व रोडा चारण ने करवाया। इसे ’राज का वैल्लौर’ भी कहते है। कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार इस दुर्ग को व्यापारियों की सुरक्षा के लिए उपयोग किया जाता था।
★ कुंभलगढ़ दुर्ग (राजसमंद)-
यह दुर्ग कुंभा ने 1458 में जरगा की पहाड़ियो पर बनवाया था, जिसके शिल्पी ’’मण्डन’’ थे। इसका निर्माण कुंभा ने अपनी पत्नी कुंभलदेवी की स्मृति में करवाया। इस दुर्ग की प्राचीर 36किमी. लम्बी है। इस किले की तुलना टॉड ने ’एस्ट्रास्कन’’ से की। यह दुर्ग मेवाड़-मारवाड़ की सीमा पर स्थित है, इसे मेवाड़ की ऑंख भी कहते है। कुंभा ने दुर्ग के अंदर एक ओर दुर्ग कटारगढ भी बनवाया, जिसमें कुंभा का निवास था। कटारगढ दुर्ग के सन्दर्भ में अबुल फजल ने लिखा है कि, ’’यह दुर्ग इतना ऊँचा है कि नीचे से ऊपर तक देखने में सिर की पगङी गिर जाती है।’’ कुंभलगढ में ही उदयसिंह का राज्याभिषेक व प्रताप का जन्म 1540 में हुआ था। तुलजा माता मंदिर व कुंभश्याम मंदिर इसी किले में अवस्थित है।
★ रणथम्भौर दुर्ग(सवाई-माधोपुर)-
एरण श्रेणी के इस दुर्ग का निर्माण 944 ई में रणथम्मनदेव ने करवाया। कुछ साक्ष्यों के अनुसार इस दुर्ग का निर्माता महेश ठाकुर था। अबुल फजल ने इस दुर्ग के बारे में कहा- ’’अन्य दुर्ग नंगे है, जबकि यह बख्तरबंद है।’’ यह दुर्ग चौहान शासक हम्मीर देव के हठ व वीरता का साक्षी रहा है।राजस्थान का पहला साका भी 1301 में इसी दुर्ग में रानी रंगदेवी व हमीर देव के नेतृत्व में हुआ था। यहां पर त्रिनेत्र गणेश मंदिर, जोरां-भौरा, बादल महल, जोगीमहल व पीर सदरूद्दीन की दरगाह भी दर्शनीय है।
★ तारागढ़(अजमेर) -
1113 में अजयराज द्वारा निर्मित अजयमेरू दुर्ग,गढबीठड़ी, तारागढ दुर्ग व पूर्व का जिबाल्टर कहलाता है। मीरान साहब की दरगाह यहीं हैं। महाराणा रायमल के पुत्र पृथ्वीराज सिसोदिया द्वारा अपनी पत्नी ताराबाई के नाम पर इसका नाम तारागढ़ रखा गया।
★ तारागढ़(बूंदी) -
राव बरसिंह के द्वारा 1354 में निर्मित बूंदी का किला भी तारागढ कहलाता है। यहां चित्रशाला (रंगमहल), छत्र महल, अनिरूद्ध महल, फूल महल आदि है। इस दुर्ग में प्रसिद्ध गर्भगुंजन तोप तथा महाबल्ला तोप है।
★ मेहरानगढ़(जोधपुर)-
राव जोधा द्वारा 1459 में रावजोधा में चिड़िया टूँक की पहाड़ी पर मोराकृति में बना यह दुर्ग मोरध्वज गढ़, मयूरध्वजगढ़, गढ़ चिंतामणि व चिड़िया टूंक किले के नाम से ख्यात है। यहां ज्वाला माता का मंदिर, चामुण्डा माता मंदिर, नागणेच माता मंदिर व भूरे खां की मजार है। दुर्ग में नीलम जड़ित मरकत मणि के दो गुलाबी प्यालेनुमा जलाशय है, यथा- (1)गुलाब सागर (2) गुलाब सागर का बाग।
इस दुर्ग में 'पुस्तक प्रकाश' (मान प्रकाश) संग्रहालय है। इस दुर्ग में किलकिला तोप, शंभूबाण तोप, गजनी तोप भी है। रानीसर व पद्मसर तालाब स्थित है। मामा भांजे व गौराधांय की छतरी भी है। इस दुर्ग की आकृति भारत के नक्शे का आभास कराती है। रुडयार्ड किपलिंग ने कहा था कि “यह मानव निर्मित नही बल्कि फ़रिस्तो द्वारा बनाया लगता है।"
★ जैसलमेर किला-
99 बुर्जों वाले इस धान्वन दुर्ग का निर्माण 1155 में राव जैसल ने त्रिकूट पर्वत पर करवाया था। 2009 में भारत सरकार ने इस दुर्ग पर डाक टिकट भी जारी किया। यह चितौड़गढ़ के बाद राजस्थान का दूसरा सबसे बड़ा लिविंग फोर्ट है। फिल्म डायरेक्टर सत्यजीत रे ने इस दुर्ग पर सोनार किला नामक फिल्म भी बनवाई।
जैसलमेर दुर्ग में ताड़ पत्रों पर हस्तलिखित ग्रंथों का सबसे बड़ा जैन ग्रंथ भण्डार है, जिसे ’जिनभद्र सूरि जैन भंडार’ कहा जाता है। यहां शीशमहल, गजविलास, जवाहर विलास, सोने चांदी के किवाड़ों वाला लक्ष्मीनाथ मंदिर भी अवस्थित है। इस दुर्ग की दुर्गमता के बारे में टॉड ने कहा है- ’’यह दुर्ग इतना दुर्गम है कि केवल पत्थर की टांगों द्वारा ही वहां तक पहुॅंचा जा सकता है। "
★ भटनेर दुर्ग(हनुमानगढ़)-
धान्वन श्रेणी के भटनेर दुर्ग का निर्माण भाटी शासक भूपत सिंह ने 265 ई. में करवाया था। घग्घर नदी के मुहाने पर स्थित यह दुर्ग उतरी सीमा का प्रहरी (उतर भट किवाड़) भी कहलाता है। दिल्ली-मुल्तान मार्ग पर स्थित होने के कारण इसका सामरिक महत्व भी है। राजस्थान में सर्वाधिक विदेशी आक्रमण भटनेर दुर्ग पर ही हुए है। इस दुर्ग ने महमूद गजनवी, तैमूर लंग व कामरान के आक्रमण को झेला है। तैमूर ने अपनी आत्मकथा तुजुक ए तैमूर में इस दुर्ग की प्रशंसा की है लिखा है कि "मैंने इतना मजबूत और सुरक्षित किला पूरे हिंदुस्तान में नहीं देखा।"1805 में बीकानेर के सूरत सिंह ने इस पर आक्रमण कर जाब्ता खां भट्टी को हराकर इस पर कब्जा कर लिया। उस दिन मंगलवार होने के कारण इसका नाम ’हनुमानगढ़’ रखा गया।
★ जूनागढ किला (बीकानेर)-
लाल पत्थरों से बने इस धान्वन दुर्ग का निर्माण 1594 में रायसिंह ने करवाया। यह चतुर्भुजाकृति में हैं। राती घाटी, जमीर का जेवर नाम से मशहूर यह दुर्ग प्राचीन शस्त्रास्त्रों, विभिन्न प्राचीन वस्तुओं के अलावा अनूप महल, फूल महल, चंद्र महल, सुनहरी बुर्ज से सुसज्जित है।
★ आमेर का किला(जयपुर)-
पर्वतमालाओं से घिरा राजा मानसिंह द्वारा निर्मित यह किला शीशमहल, शिलादेवी मंदिर, जगतशिरोमणि मंदिर, अम्बिकेश्वर महादेव मंदिर के लिये प्रसिद्ध है।
★ जयगढ किला (जयपुर)-
मिर्जा राजा जयसिंह द्वारा निर्मित यह गिरी दुर्ग अपनी विस्मयकारी घटनाओं के कारण राज का तिलस्मी दुर्ग भी कहलाता है। यह चिल्ह का टीला नामक पहाड़ी पर है। यह राजस्थान का एकमात्र दुर्ग है, जिसमें तोप ढालने का कारखाना है, जिसे सिलहखाना कहा जाता है। एशिया की सबसे बड़ी तोप 'जयबाण तोप' भी यहां है जिसका निर्माण सवाई जयसिंह ने करवाया था।
★ नाहरगढ किला (जयपुर)-
सवाई जयसिंह ने मराठा आक्रमणों से रक्षार्थ इस दुर्ग का निर्माण 1734 में एक पहाड़ी पर करवाया। इसे 'सुलक्षणगढ़'(सुदर्शनगढ़) कहते है। इस गढ का नामकरण नाहरसिंह भौमियां के नाम पर हुआ। माधोसिंह ने इसमें 9 पासवानों के महल बनवाये।
★ गागरोण दुर्ग (झालावाड़)-
आहू व कालीसिंध नदियों के संगम पर बना यह जल दुर्ग डोडिया राजपूतों ने बनवाया, अतः इसे डोडगढ़ या धूलरगढ़ भी कहते है। इस दुर्ग का नामकरण खींची शासक देवनसिंह ने गागरोण रखा। यहां कोटा रियासत की सिक्का ढालने की टकसाल भी थी। सूफी संत मीठे शाह की दरगाह व संत पीपा की छतरी भी यहां पर है। यहां दो साके- (1)1423- अचलदास बनाम होशंगशाह (2) 1444-पाल्हण सी बनाम महमूद खलजी हुए। 1444 की विजय के बाद मजमूद खलजी ने इसका नामकरण ’मुस्तफाबाद’’ कर दिया था। पृथ्वीराज राठौड़ ने अपना प्रसिद्ध ग्रंथ –वेलि क्रिसन रुक्मिणी री गागरोण मे रहकर लिखा था।
★ सिवाना दुर्ग (बाड़मेर)-
मारवाड़ का यह गिरी दुर्ग सौनगरा चाहौनों की भूमि रहा है। यहां 2 साके प्रथम- 1308-शीतलदेव चौहान बनाम अला.खलजी व दूसरा -1559-कल्ला राठौड़ बनाम मोटा राजा उदयसिंह हुए।इस पर कुमट नामक झाड़ी बहुतायत में मिलती थी, जिससे इसे ‘कुमट दुर्ग’ भी कहते हैं।चंद्रसेन ने मुगलों(अकबर) से युद्ध भी सिवाना को केंद्र बनाकर किया। जोधपुर के राठौड़ नरेशों के लिए भी यह दुर्ग विपत्ति काल में शरण स्थली के रूप में काम आता था। दुर्ग में कल्ला रायमलोत का थडा, महाराजा अजीतसिंह का दरवाजा, कोट, हल्देश्वर महादेव का मंदिर आदि दर्शनीय है।1308 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने सिवाणा दुर्ग को जीतकर उसका नाम “खैराबाद” रख दिया।
★ अकबर का किला(अजमेर)-
अकबर ने इस दुर्ग का निर्माण 1570 में (अजमेर) मुगल सैन्य अभियान के केन्द्र के रूप में किया। यह दुर्ग अकबर का दौलतखाना या मैगजीन का किला कहलाता है। हल्दीघाटी युद्ध की रणनीति यहीं बनायी गयी थी। 10 जनवरी 1616 को जेम्स प्रथम का दूत ’टॉमस रो’ यही जहांगीर से मिला था।
★ जालौर का किला-
सुवर्णगिरी नाम से मशहूर यह किला संभवतया प्रतिहार नागभट्ट-प्रथम ने बनवाया था। सूकड़ी नदी के किनारे बना यह कनकांचल व सोनलगढ किला सौनगरा चौहानों की भूमि रहा है। यह मारवाड़ तथ गुजरात की सीमा पर स्थित है। यहां 1311 में (कान्हड़देव बनाम अला.खलजी) एक साका हुआ था।
★ लोहागढ दुर्ग(भरतपुर)-
भरतपुर का यह दुर्ग 1733 में सूरजमल ने बनवाया था। इस किले में जवाहरबुर्ज व फतेह बुर्ज है। अहमद शाह अब्दाली और जनरल लेक जैसे आक्रमणकारी भी इस दुर्ग में प्रवेश नहीं कर सके।पूरा दुर्ग पक्की प्राचीर से घिरा हुआ है। इस प्राचीर के बाहर 100 फुट चौड़ी और 60 फुट गहरी खाई है।दुर्ग में प्रवेश करने के लिए इसके चारों ओर की खाई पर दो पुल बनाए गए हैं। इन पुलों के ऊपर गोपालगढ़ की तरफ से बना हुआ दरवाजा अष्ट धातुओं के मिश्रण से निर्मित है। यह दरवाजा महाराजा जवाहर सिंह 1765 ईस्वी में मुगलों के शाही खजाने की लूट के समय लाल किले से उतार कर लाया था।भरतपुर दुर्ग पर सबसे जोरदार आक्रमण अंग्रेजों ने 1805 ईसवी में किया।भरतपुर के शासक रणजीत सिंह ने अंग्रेजों के शत्रु जशवंतराव होल्कर को अपने यहां शरण दी, जिससे उसे अंग्रेजों का कोपभाजन बनाना पड़ा।अंग्रेज सेनापति लेक 1805 ईसवी की जनवरी से लेकर अप्रैल माह तक 5 बार भरतपुर दुर्ग पर जोरदार हमले किए गए। ब्रिटिश तोपो ने जो गोले बरसाए वे या तो मिट्टी की बाह्य प्राचीर में धँस गए। उनकी लाख कोशिश के बावजूद भी किले का पतन नहीं हो सका । फलतः अंग्रेजों को संधि करनी पड़ी।17 मार्च 1948 को मत्स्य संघ का उद्घाटन समारोह भी इसी दुर्ग में हुआ था।
★ नागौर का किला-
अहिच्छगढ, नाग या नागाणा नाम से मशहूर नागौर का यह किला पृथ्वीराज चौहान के पिता सोमेश्वर के सामंत कैमास ने विक्रम सम्वत 1211 में बनवाया। यह दुर्ग अमरसिंह राठौड़ की वीर गाथाओं से गूंजता रहा है। इसे साफ सफाई के लिये यूनेस्कों ने ’’अवार्ड ऑफ एक्सीलेंस’’ से नवाजा है ।
★ अन्य:-
शेरगढ का किला (धौलपुर/बारां),शाहबाद का किला (बारां),अचलगढ़ (आबू-सिरोही),माण्डलगढ दुर्ग (भीलवाड़ा),चुरू का किला (चुरू),बाणासुर/विजयगढ, बयाना का किला (भरतपुर),माधोगढ़ दुर्ग (जयपुर),बाला किला (अलवर),फतेहपुर (सीकर),दौसा का किला (दौसा)।
★ नदी तट के किनारे स्थित दुर्ग:-
कोटा दुर्ग - चम्बल ।
शेरगढ (धौलपुर) - चम्बल।
सुवर्णगिरी (जालौर) -सूकड़ी।
गागरोणगढ़(झालावाड़) - कालीसिंध व आहु।
चितौड़गढ़ - गंभीरी व बेडच।
★ दुर्गो के उपनाम:-
चितौड़गढ - चित्रकूट, राजस्थान का गौरव।
चौमूं का किला - चौमुंहागढ़, धारधारगढ, रघुनाथगढ।
शेरगढ दुर्ग - दक्षिण का द्वार।
तिमनगढ(भरतपुर) - त्रिभुवनगढ।
जयगढ - चिल्ह का टोला।
जैसलमेर- सोनारगढ, त्रिकूटगढ।
जोधपुर - मेहरानगढ।
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