राजस्थान की प्राचीन सभ्यताएं

परिचय-
राजस्थान की यह मरुभूमि प्राचीन सभ्यताओं की जन्म स्थली रही है। यहाँ कालीबंगा, आहड़, बैराठ, बागौर, गणेश्वर जैसी अनेक पाषाणकालीन, सिन्धुकालीन और ताम्रकालीन सभ्यताओं का विकास हुआ, जो  राजस्थान के इतिहास की प्राचीनता सिद्ध करती है। इन सभ्यता-स्थलों में विकसित मानव बस्तियों के प्रमाण मिलते हैं। यहाँ बागौर जैसे स्थल मध्यपाषाणकालीन और नवपाषाणकालीन इतिहास की उपस्थिति प्रस्तुत करते हैं। कालीबंगा जैसे विकसित सिन्धुकालीन स्थल का विकास यहीं पर हुआ। वहीं आहड़, गणेश्वर जैसी प्राचीनतम ताम्रकालीन सभ्यताएँ भी पनपीं।


पूरा पाषाण काल- जायल, डीडवाना।
मध्य पाषाण काल - तिलवाड़ा, बागौर।
नव पाषाण काल - कोई नहीं।
ताम्र पाषाण काल-आहाड़,गिलूण्ड,बालाथल,ओझियाना।
ताम्र युग- जोधपुरा(जयपुर), गणेश्वर(सीकर)।



कालीबंगा सभ्यता -
★ कालीबंगा नामक पुरातात्विक स्थल हनुमानगढ में है, जिसकी खोज 1952 में ’अमलानंद घोष’ ने की थी जबकि यहां उत्खनन का कार्य बी.बी.लाल व बी.के.थापर के निर्देशन में हुआ।
★ कालीबंगा का शाब्दिक अर्थ है - ’काले रंग की चूड़ियां’।यह सभ्यता कांस्ययुगीन है व घग्घर नदी के किनारे विकसित हुई है।कालीबंगा सभ्यता सैंधव सभ्यता से भी प्राचीन मानी जाती है। कालीबंगा का समय 2400 ई पू माना जाता है।
★ कालीबंगा सभ्यता की विशेषताएं निम्न प्रकार वर्णनीय है,यथा:-
          ● नगर के चारों और सुरक्षात्मक परकोटा।
          ● आवासों का निर्माण कच्ची ईंटो से।
          ● स्नानागार व नालियों के निर्माण में पक्की ईंटो का प्रयोग।
          ● घरों की दीवारों व फर्श पर गारे का पलस्तर।
          ● जुते हुए खेत के साक्ष्य, साल में दोहरी फसल।
          ● जौ और गेंहू मुख्य खाद्यान्न।
          ● गाय, भैंस , भेड़, बकरी, बैल पशुपालन।
          ● आँख में सुरमा डालने के लिए सलाइयों का    प्रयोग, सौंदर्य प्रेमी समाज।
          ● दो टीलों की प्राप्ति, पश्चिमी गढी टीला व पूर्वी नगरीय टीला।दोनों के प्रथक पृथक परकोटे।
          ● अत्यधिक परिष्कृत नगर योजना- उन्नत नगरीय सभ्यता, 7.20 मीटर तक चौड़ी समकोण पर काटती सड़कें।गंदे पानी के निकास के लिए नालियां समुचित व्यवस्था। सड़कों के किनारे दुकानों के लिए ऊँचे चबूतरे।घरों के द्वार अंदर की गली में खुलते थे।
         ● गढ़ी क्षेत्र से 7 आयताकार अग्निवेदिकाये प्राप्त हुई है, अंडाकार कुए मिले है, साथ ही शवाधान मिले है, जो तत्कालीन धार्मिक जीवन व मान्यताओं को बतलाते है।
         ● कालीबंगा से पशु पक्षियों के स्वरूप वाले खिलौने, मिट्टी की मोहरें, तोल के बांट, तांबे की चूड़ियां, चाकू, तांबे के औजार आदि मिले है। 


आहड़ सभ्यता:-
★ आहड़ (बेडच) नदी के किनारे विकसित यह सभ्यता उदयपुर में अवस्थित एक ग्रामीण सभ्यता है।
★ यह सम्भवतः 1800  से 1200 ई पू की ताम्रयुगीन सभ्यता थी।


★ इस सभ्यता की खोज 1953-54 में अक्षय कीर्ति व्यास व आर.सी.अग्रवाल ने की। यहां उत्खनन कार्य एच.डी.सांकलिया के नेतृत्व में हुआ।
★ इस सभ्यता में तांबे का बड़े पैमाने पर उपयोग हुआ है। तांबा गलाने की भट्टियों के अवशेष यहाँ से प्राप्त हुए हैं। तांबे को गलाना व उपकरण बनाना आहड़ सभ्यता का प्रमुख उद्योग था,यहां से ताम्र निर्मित छल्ले, चूड़ियां, सलाईयां व कुल्हाड़ियां भी प्रचुरता से मिली है। इस कारण इसे ताम्रवती नगरी, घूलकोट व अघाटपुर के नाम से जाता जाता है।
★ एक रसोई में एक साथ छः चुल्हे प्राप्त हुए है, जो सम्भवतः संयुक्त परिवार प्रथा के परिचायक है।यहां के आवास में ढलवां छतों व लकडी की बल्लियों का प्रयोग होता था। आहड़ से अत्यधिक मात्रा में काले व लाल रंग के मृदभाण्ड भी प्राप्त हुए है।





★ यहां से कपड़े की छपाई हेतु लकडी के बने ठप्पे, ईरानी शैली के छोटे हत्थेदार बर्तन, हड्डी का चाकू, सिर खुजलाने का यंत्र, मिट्टी का तवा, सुराही, टेराकोटा निर्मित 2 स्त्री धड़ आदि सामग्रियां भी मिली हैं।


गणेश्वर -

"ताम्रयुगीन संस्कृतियों की जननी’’  इस सभ्यता का विकास कांतली नदी के किनारे हुआ व उत्खनन रतन चंद्र अग्रवाल के नेतृत्व में 1977 में हुआ। यहां से खुदायी के दौरान तांबे से निर्मित सैंकड़ो आयुध व उपकरण मिले है। यहां ताम्र निर्मित मछली पकड़ने के कांटे भी मिले है। यहां से तत्कालीन समय में अफगानिस्तान को तांबे का निर्यात किया जाता था। यहां से तांबे की कुल्हाड़ी, तीर, भाले, बाणाग्र व सुइयां आदि भी मिले है। 


बैराठ -
★ बाणगंगा नदी के किनारे विकसित इस सभ्यता से मौर्यकालीन व बौद्ध धर्म संबंधी पुरा अवशेष मिले है।
★ इस सभ्यता की खोज 1936-37 में दयाराम साहनी ने की। यह प्राचीन मत्स्य जनपद की राजधानी था।किवदंती अनुसार पांडवों ने अपना 1 वर्ष अज्ञातवास विराटनगर (बैराठ) में ही व्यतीत किया था।
★ इस सभ्यता के प्रमुख पुरास्थलों में भीमजी की डूंगरी, महादेव डूंगरी व बीजक डूंगरी प्रमुख है।
★ 6ठी शताब्दी ई. में चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी विराटनगर की यात्रा की थी।
★ मौर्य शासक अशोक का ’भाब्रु शिलालेख’ (जो 1837 में कैप्टन बर्ट ने खोजा था) यहां मिला है, जो प्राकृत भाषा में है व वर्तमान में कोलकाता संग्रहालय में सुरक्षित है। भाब्रू के शिलालेख में कुछ इस प्रकट बुद्ध धम्म संघ का विवरण आता है- "मगध के राजा प्रियदर्शी ने संघ को अभिवादन करके कहा मैं आपके स्वास्थ्य व सुखविहार की कामना करता हूँ।आप लोगों को विदित है कि बुद्ध धम्म व संघ में मेरी कितनी श्रद्धाभक्ति व अनुरक्ति है।भदन्तो जो कुछ भी भगवान बुद्ध द्वारा भाषित है, वह सुभाषित है।......भदन्तो मैं चाहता हूं कि धर्मपर्यायों को  भिक्षु व भिक्षुणियाँ प्रतिक्षण सुने व उन पर मनन करें।भदन्तो ! इसी प्रयोजन से इसे लिखवाता हूँ कि लोग मेरे अभिप्राय को जान लें।"

★ बीजक डूंगरी से अशोक कालीन बौद्ध मन्दिर, मठ व स्तूपों के अवशेष मिले है।  यहां से यवन शासक मिनेण्डर की मुद्राएं भी मिली है, जो यहां कभी यवन शासन के अस्तित्व की परिचायक है।




अन्य सभ्यताएं:- 
कुराड़ा (नागौर), बूढा पुष्कर (अजमेर), नन्दलाल पुरा, किराडोथ व चीथवाड़ी (जयपुर), पिण्ड पाडलिया (चितौड़गढ़), ऐलाना (जालौर), साबनियां व पूंगल (बीकानेर), नगरी (चितौड़गढ़), झाडोल (उदयपुर),
नोह (भरतपुर), सुनारी(झुंझुनूं), जोधपुरा (जयपुर), ईसवाल (उदयपुर),गरडदा (बूंदी), लोद्रवा व ओला (जैसलमेर), डोडाथोरा व सोंथी (बीकानेर), जहाजपुर (भीलवाड़ा), डंडीकर (अलवर), तिपटिया (कोटा), नगरी (चित्तौड़),नलियासर (जयपुर)।

★ गरडदा(बूंदी)- राजस्थान की पहली बर्ड राइडर रॉक पेंटिंग यहां से प्राप्त हुई है।
★ भीनमाल (जालौर) से प्राप्त मृदपात्रों पर विदेशी रोमन एम्पोरा अंकित है।


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