गुर्जर प्रतिहार वंश का इतिहास
।। गुर्जर प्रतिहार वंश ।।
राजस्थान में प्रतिहारों का आगमन 6ठीं शताब्दी के उतरार्द्ध में हुआ। प्रतिहारों का शासन गुर्जरत्रा क्षेत्र पर होने के कारण ये गुर्जर प्रतिहार कहलाये। नैणसी ने इनकी 26 शाखाओं का वर्णन किया है। इनमे से मण्डोर, जालौर, उज्जैन व कन्नौज के प्रतिहार प्रसिद्ध हुए।
मण्डोर के प्रतिहार-
◆ हरिश्चंद्र ब्राह्मण-
प्रतिहारों की मण्डोर शाखा के प्रवर्तक व आदि पुरूष हरिश्चंद्र ब्राह्मण (रोहिलाद्रि) थे। इनकी दूसरी पत्नी भद्रा के पुत्र भोगभट्ट, कदक, रज्जिल, दह के नाम से विख्यात हुए। इन्होंने माण्डव्यपुर (मंडौर) को जीता व उसके चारों ओर दुर्ग बनाया। इसके तीसरे पुत्र रज्जिल से प्रतिहार वंश की वंशावली प्रारंभ होती है।
◆ नागभट्ट-प्रथम(730-756)-
इसी शाखा के नागभट्ट-प्रथम (रज्जिल का पोता) प्रतापी शासक हुआ। नागभट्ट ने राजधानी भी मण्डौर से 'मेडता' स्थानांतरित की। नागभट्ट प्रथम को प्रतिहार साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। इसके दरबार को नागावलोक दरबार कहते थे। बाद में इसने अवन्ति में राजधानी स्थापित की।इसने अरबों से लोहा लिया व परास्त कर उन्हें भगाया।ग्वालियर अभिलेख में नागभट्ट को मलेच्छों (अरबियों) का नाशक कहा गया है।
जालौर, उज्जैन व कन्नौज के प्रतिहार-
◆ वत्सराज(775-805)
नागभट्ट-प्रथम के बाद इस वंश का शासक वत्सराज बड़ा प्रतापी शासक हुआ। वत्सराज ने पाल शासक धर्मपाल व राष्ट्रकूट राजा ध्रुव को भी हराया। वत्सराज के दरबार में उद्योतन सूरी (ग्रंथ- कुवलयमाला,778 ई.) व जिनसेन सूरी (ग्रंथ-हरिवंश पुराण) रहते थे।
◆ नागभट्ट-द्वितीय (795-33)-
वत्सराज के बाद उसका पुत्र नागभट्ट-द्वितीय (795-33) शासक बना।वत्सराज व रानी सुन्दर देवी का पुत्र नागभट्ट द्वितीय था,जिसने 806 ई. से 808 ई. के मध्य राष्ट्रकूट वंश के शासक गोविन्द तृतीय से युद्ध किया, इस युद्ध में नागभट्ट द्वितीय की पराजय हुई, इस पराजय के पश्चात् नागभट्ट द्वितीय ने हिम्मत नहीं हारी और अपनी तैयारी में वापस लग गया लेकिन गोविन्द तृतीय वृद्ध हो गया तथा अपनी घरेलू समस्या में फँस गया जिसका नागभट्ट द्वितीय ने फायदा उठाकर आक्रमण कर दिया, और कन्नौज के शासक चन्द्रायुद्ध को हराकर कन्नौज पर अधिकार किया और अपनी राजधानी बनाई तथा इसके साथ ही प्रतिहारों की कन्नौज शाखा का आरम्भ किया, नागभट्ट द्वितीय ने बंगाल के शासक धर्मपाल को पराजित कर मुंगेर पर अधिकार किया तथा अरबी आक्रमणों को रोका तथा नागभट्ट द्वितीय ने परमभट्टारक, महाराजाधिराज, परमेश्वंर की उपाधियाँ धारण की और त्रिपक्षीय संघर्ष को समाप्त करने का श्रेय नागभट्ट को जाता है, नागभट्ट द्वितीय ने बुचकेला (जोधपुर) में एक विष्णु तथा शिव मंदिर बनवाया, जो वर्तमान में शिव तथा पार्वती के मंदिर के रूप में विख्यात है। सन् 833 ई. में नागभट्ट द्वितीय ने गंगा में जल समाधि ली।
◆ मिहिरभोज (836-885)-
प्रतिहार वंश का सबसे शक्तिशाली शासक मिहिरभोज (836-885) हुआ। मिहिरभोज ने आदिवराह व प्रभास की उपाधि धारण की। मिहिर भोज उत्तरी भारत का अपने समय का सबसे शक्तिशाली शासक था, इस शासक के बारे में जानकारी ग्वालियर के शिलालेख/प्रशस्ति से मिलती हैं तथा इस शासक के बारे जानकारी अरबी यात्री सुलेमान देता है, सुलेमान ने मिहिरभोज को इस्लाम का सबसे बड़ा शत्रु व अरबों के प्रति शत्रु भाव रखने वाला बताया। मिहिरभोज वैष्णव धर्म का संरक्षक था यह भगवान विष्णु का उपासक था,इसलिए आदिवराह व प्रभास पाटन आदि उपाधियों से विभूषित किया गया, मिहिर भोज अपने पिता रामभद्र की हत्या कर शासक बना, इस कारण मिहिर भोज इतिहास में प्रतिहारों में पितृहंता कहलाता हैं। इसने राष्ट्रकूट वंश के शासक कृष्ण तृतीय को हराकर मालवा पर अधिकार कर लिया तथा इसने पाल वंश के शासक देवपाल व विग्रह पाल को हराकर अन्तिम रूप से कन्नौज पर अपना अधिकार जमाया, मिहिर भोज के समय चाँदी व ताँबे के सिक्के मिले है। इन सिक्कों पर श्री मदआदिवराह शब्द अंकित है। मिहीर ने ग्वालियर में प्रसिद्ध 'तेली का मंदिर' बनवाया।
◆ महेन्द्रपाल प्रथम(890-910):- मिहिरभोज का पुत्र महेन्द्रपाल प्रथम प्रतिहारों का शासक बना तथा महेन्द्रपाल के दरबारी राजशेखर ने इसे निर्भय नरेश कहा था। इसका दरबारी साहित्यकार एवं गुरू राजशेखर था। राजशेखर की रचनाओं में कर्पूरमंजरी, काव्यमीमांसा, बाल रामायण, बाल महाभारत तथा हरविलास प्रमुख है। महेन्द्रपाल प्रथम ने परमभट्टारक, परमभागवत, परमेश्वर आदि उपाधियाँ धारण की, महेन्द्रपाल प्रथम के पश्चात् इसका पुत्र भोज द्वितीय राजा बना लेकिन इसकी कोई विशेष उपलब्धि नहीं थी 914 में उसके सोतेले भाई महिपाल प्रथम ने उससे राज्य छीन लिया।
◆ महिपाल प्रथम (912-44):- गुर्जर प्रतिहारों का अंतिम प्रभावशाली राजा था। महिपाल प्रथम के शासनकाल से प्रतिहारों का पतन शुरू होता हैं।बगदाद के अरब यात्री अलमसूदी ने कन्नौज की यात्रा की। इसके सिंहासन पर बैठते ही राष्ट्रकूट वंश के नरेश इन्द्र तृतीय ने कन्नौज पर आक्रमण कर दिया और कन्नौज को अपने अधिकार में कर लिया तथा महिपाल प्रथम राष्ट्रकूटों से पराजित होकर कन्नौज से भाग गया, लेकिन चन्देल नरेश की सहायता से महिपाल ने पुनः कन्नौज पर अधिकार कर लिया।
◆ महेन्द्रपाल द्वितीय(944-48) :- महिपाल के बाद महिपाल प्रथम व प्रज्ञाधना का पुत्र महेन्द्रपाल द्वितीय गद्दी पर बैठा। इसके पश्चापत् देवपाल राजा बना, इसके समय चन्देलों ने स्वतंत्र राज्य बना लिया तथा विजयपाल के समय गुजरात में चालुक्य राजाओं ने अपने आप को स्वतंत्र बना लिया तथा इसके बाद में राज्यपाल शासक बना।
◆ राज्यपाल (960-1018):- प्रतिहार शासक राज्यपाल के समय महमूद गजनवी ने कन्नौज पर आक्रमण किया जिससे डरकर कन्नौज छोड़कर भाग गया।राजपाल की कायरता के कारण भारतीय राजाओं ने संघ बनाकर चंदेल राजा गंड व उसके पुत्र विद्याधर ने इसे मार डाला। इसके बाद त्रिलोचनपाल(1018-27) प्रतिहारों का शासक बना, जो महमूद गजनवी का आक्रमण नहीं झेल पाया।
◆ यशपाल(1024-36) :- प्रतिहार वंश का अंतिम शासक बना,जिसकी 1036 में मृत्यु के बाद इस वंश का पतन हो गया। 11वीं शताब्दी में कन्नौज पर गहड़वाल वंश ने अपना अधिकार स्थापित कर लिया।
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