प्रमुख क्षेत्रीय विकास कार्यक्रम
★ मरू विकास कार्यक्रम(DDP):-
राष्ट्रीय कृषि आयोग की सिफारिश पर 1977-78 में इस कार्यक्रम को शुरू किया गया था। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य मरुस्थल को आगे बढ़ने से रोकना तथा इस क्षेत्र के लोगों की आर्थिक दशा को को सुधारना (पशुपालन का विकास,कृषि वानिकी,लघु सिंचाई व विधुतीकरण) है। यह कार्यक्रम केंद्र – राज्य के 75:25 अनुपात से संचालित है।यह कार्यक्रम राज्य के निम्न 16 जिलों के 85 खण्डों में संचालित किया जा रहा है: अजमेर,जयपुर,सिरोही,राजसमंद,उदयपुर,बीकानेर,बाड़मेर,जोधपुर,जालोर,नागौर,चुरू,पाली,गंगानगर,जैसलमेर,सीकर व झुंझुनू।
★ सूखा संभावित क्षेत्र कार्यक्रम(DPAP):-
केंद्र राज्य(50:50) के संयुक्त सहयोग से यह कार्यक्रम वर्ष 1974-75 में शुरू किया गया था।वर्तमान में यह कार्यक्रम राज्य के 11 जिलों के 32 खंडों में संचालित है।यथा- उदयपुर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, कोटा, बारां, भरतपुर, झालावाड़, टोंक, सवाई माधोपुर व अजमेर।
इस कार्यक्रम का प्रमुख उद्देश्य अकाल व सूखे को रोकना एवं इसके प्रभाव को कम करने के लिए वाटरशेड प्रबंधन, वृक्षारोपण, पानी व चारे का प्रबंध, जल संसाधन प्रबंध व ग्रामीण विकास इत्यादि कार्य करना है।
★ जनजाति क्षेत्रीय विकास कार्यक्रम(Tribal Area Development Programme) :-
राज्य में जनजातियों के विकास के लिए कई कार्यक्रम संचालित हो रहे हैं,जैसे:-
● जनजाति उप-योजना (Tribal Sub-Plan):- राज्य में सर्वाधिक जनजातीय संकेंद्रण वाले बांसवाड़ा, डूंगरपुर, उदयपुर, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, प्रतापगढ़, आबू रोड व सिरोही जिलों की 23 पंचायत समितियों के 4400 से अधिक ग्रामों में यह कार्यक्रम वर्ष 1974-75 से संचालित हो रहा है। इन जिलों की 66% से अधिक आबादी जनजातीय है। इस योजना का प्रमुख उद्देश्य जनजातीय लोगो का आर्थिक स्तर सुधारना व उनको मुख्य धारा से जोड़ना है। इसमें कृषि, सिंचाई, व्यावसायिक प्रशिक्षण, पशुपालन, डेरी विकास,ग्रामीण विद्युतीकरण, बीज व उर्वरक वितरण, फार्म वानिकी इत्यादि कार्य शामिल हैं।
● परिवर्तित क्षेत्र विकास कार्यक्रम(Modified Area Deveploment Program)(MADA):-
TSP क्षेत्र के अलावा जनजातीय जनसँख्या वाले 13 जिलों के लगभग 2900 से भी अधिक गावों में यह कार्यक्रम 1978 से संचालित हो रहा है।इसमें शामिल जिले है:- अलवर, धौलपुर, जयपुर, टोंक, सवाई माधोपुर, चित्तौड़गढ़, उदयपुर,पाली, कोटा, झालावाड़,बूंदी, भीलवाड़ा, सिरोही।इसमें मुख्यतः शैक्षणिक विकास के अलावा हथकरघा, हस्तशिल्प, बुनाई, लघु सिंचाई,व्यावसायिक प्रशिक्षण इत्यादि पर बल दिया जाता है।
● सहरिया विकास कार्यक्रम:- वर्ष 1978 से बारां जिले की शाहबाद व किशनगंज तहसीलों के सहरिया बहुल 435 गाँवों में संचालित है। इसमें, पशुपालन,कुटीर उद्योग, शिक्षा,वानिकी, पोषण, पेयजल, ग्रामीण आवास आदि पर बल है।
★ अरावली विकास कार्यक्रम(ADP):-
अरावली क्षेत्र के प्राकृतिक परिवेश को संरक्षित करने व इसे हरा भरा बनाए रखने के लिए पंचम पंचवर्षीय योजना के तहत 1974-75 में यह कार्यक्रम चालू किया गया। यह एक केंद्रीय प्रवर्तित योजना है। इसका क्षेत्र 16 जिलों के 120 खंडों के 41,500 वर्ग किमी में विस्तृत है।इसके अंतर्गत अरावली पहाड़ी क्षेत्र में सघन वृक्षारोपण, खनन पर प्रतिबंध, वृक्षो की कटाई पर रोक, स्थानीय क्षेत्र के लोगो का विकास व उनमे जागरूकता का प्रसार आदि कार्य किये जा रहे हैं।
★ मेवात क्षेत्र विकास कार्यक्रम(1987-88):-
राज्य के अलवर भरतपुर क्षेत्र के आर्थिक व सामाजिक उत्थान के लिए यह कार्यक्रम संचालित हो रहा है।
★ डांग क्षेत्र विकास कार्यक्रम(1994-95):-
चम्बल नदी के बहाव क्षेत्र में निर्मित बड़े बड़े अनुपजाऊ व बंजर क्षेत्र,जो सदियों से दस्यु आतंक से ग्रसित है,को स्थानीय भाषा में ‘डांग क्षेत्र’ कहा जाता है।सन् 1994-95 से सवांईमाधोपुर, धौलपुर, करौली, बूंदी, कोटा, बांरा, झालावाड, भरतपुर आदि आठ जिलो में यह कार्यक्रम संचालित हैं।इस कार्यक्रम के प्रमुख उद्देश्य है,-इस क्षेत्र का आर्थिंक-सामाजिक विकास करना, डाकुओं से मुक्ति दिलाना व पर्यावरण का विकास करना हैं।
★ मगरा क्षेत्र विकास कार्यक्रम(2005-06):-
अरावली का केन्द्रीय मध्य भाग मगरा क्षेत्र कहलाता हैं।इसके अन्तर्गत पाली, राजसमंद, अजमेर का दक्षिण भाग, चित्तौड़गढ़, सिरोही आदि जिले आते हैं।इस योजना का मुख्य उद्देश्य इस क्षेत्र का आर्थिंक, सामाजिक विकास करना हैं।
★ सीमा क्षेत्र विकास कार्यक्रम(1993-94)-बाड़मेर, जैसलमेर, बीकानेर व गंगानगर में।उद्देश्य- सुरक्षा के लिए आधार ढांचे के विकास के साथ साथ स्थानीय सामाजिक-आर्थिक उत्थान के कार्य।
★ एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम(1978)- निर्धनता उन्मूलन के लक्ष्य से प्रेरित यह कार्यक्रम पूरे राज्य में संचालित है। इसमें सब्सिडी पर गरीबो को संसाधन उपलब्ध करवाना, उनके लिए सस्ते संस्थागत ऋण की व्यवस्था करना,उन्हें स्वरोजगार के अवसर प्रदान प्रदान करना,जैसे कार्य शामिल हैं।
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