राजस्थान की लोकदेवियाँ
राजस्थान की प्रमुख लोकदेवियाँ:-
★ कैलादेवी-
करौली के कैलादेवी मंदिर का निर्माण यादव वंश के शासक महाराजा गोपाल सिंह के द्वारा करवाया गया। करौली के यादव वंश की कुलदेवी भी यही है। आगरा व मथुरा का अग्रवाल समाज भी इन्हें अपनी कुलदेवी मानता है। कैलादेवी (करौली) में प्रतिवर्श चैत्र नवरात्रौं में इनका लक्खी मेला लगता है। इस मेले की प्रमुख विशेषता 'लांगुरिया गीत' है।
★ शिलादेवी-
16वीं शताब्दी में आमेर के कच्छवाह वंशी राजा मानसिंह द्वारा आमेर के किले में शिला देवी के मंदिर का निर्माण करवाया। महाराजा मानसिंह ने बंगाल से शिलादेवी की मूर्ति लाकर आमेर में स्थापित करवाई। शिलादेवी कच्छवाह वंश की आराध्यदेवी मानी जाती है। शिलादेवी का मेला प्रतिवर्ष चैत्र नवरात्रों में भरता है।
★ करणीमाता -
करणीमाता के मंदिर का निर्माण बीकानेर के देशनोक नाम स्थान पर महाराजा गंगा सिंह ने करवाया। बीकानेर के राठौड़ों व चारणों की कुलदेवी है। करणी माता के आर्शीवाद से बीका ने 1488 में बीकानेर राज्य की स्थापना की। ये "चूहों की देवी’’ के नाम से प्रसिद्ध लोकदेवी है। नवरात्रों में यहां मेला भरता है।
★ जीणमाता-
रैवासा (सीकर) में जीणमाता का सुप्रसिद्ध मंदिर है। जिसका निर्माण पृथ्वीराज चौहान प्रथम के समय करवाया गया था। ये देवी चौहानों की कुलदेवी मानी जाती है। प्रतिवर्ष नवरात्रों में यहां लक्खी मेला भरता है। जिसमें मीणा समुदाय के लोग अधिक संख्या में भाग लेते है।
★ बडली माता-
इनका मंदिर छींपों के अकोला (चितौड़गढ़) में बेडच नदी के किनारे स्थित है। माता की तांती बांधने से बीमार व्यक्ति ठीक हो जाता है व बच्चों की दो तिबारियों से निकालने से बीमारी ठीक हो जाती है।
★ सचिया माता-
जोधपुर के सचिया माता मंदिर का निर्माण परमार राजकुमार उत्पल देव ने करवाया था। सचिया माता ओसवालों (जैन) की कुलदेवी है। सचिया माता का मेला ओसियां (जोधपुर) में चैत्र नवरात्रों में भरता है।
★ लुटियाली माता-
लुटियाली माता का मंदिर फलौदी (जोधपुर) में स्थित है। इनके मंदिर प्रायः खेजड़ी वृक्ष के नीचे होते है। इसी प्रकार इन्हें ’खेजड़बेर राय भवानी’ कहा जाता है। ये कल्ला जाति की कुलदेवी है।
★ स्वांगिया/आवड़ माता-
शकुन चिडिया का प्रतीक आवड़ या स्वांगिया माता को ’सुग्गामाता’ या ’उतरढाल’ भी कहा जाता है। जैसलमेर में चारणों की देवी आवड मां आईनाथ जोगमाया के रूप में पूज्य है। आवड माता या स्वांगिया माता भाटी वंश की कुलदेवी है।
★ आशापुरा माता-
राजस्थान में बिस्सा जाति की कुलदेवी आशापुरा माता का मंदिर पोकरण (जैसलमेर) के पास स्थित है व प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ला दशमी व माघ शुक्ल दशमी को यहॉं मेला भरता है।
★ आमजा माता-
केलवाड़ा (उदयपुर) की आमजा माता भीलों की पूज्य देवी है। इनके मंदिर में एक भील व दूसरा ब्राहमण पुजारी है।
★ राणी सती-
राणी सती का वास्तविक नाम नारायणी बाई था, जो अपने पति तनधनदास के साथ सती हुई। राणी सती को ’’दादीजी’’ भी कहा जाता है। राणीसती का मंदिर झुंझुनूं में है, जहॉं भाद्रपद अमास्या को मेला भरता है, जो वर्तमान में प्रतिबंधित है।
★ सकराय/शाकंभरी माता-
सीकर जिले के उदयपुरवाटी की सकराय माता खण्डेलवालों व चौहानों की कुलदेवी है। यहां नवरात्रों में मेला भरता है।
चेचक की देवी शीतला माता का चाकसू(जयपुर) में मंदिर महाराजा माधोसिंह ने बनवाया। यह राजस्थान की एकमात्र देवी है जिसका पूजा खण्डित रूप में होती है। प्रतिवर्ष चैत्र कृष्ण अष्ठमी को चाकसू में मेला भरता है। इस देवी के मंदिर में पुजारी कुम्हार जाति का होता है। शीतला माता को चेचक की देवी, सेढ़ल माता व बच्चों की संरक्षिका देवी भी कहा जाता है।
★ आई माता-
इनका मंदिर बिलोडा (जोधपुर) में है। ये सीरवी जाति के क्षत्रियों की कुलदेवी है। आईमाता के मंदिर को ’दरगाह’ व थान को ’बढेर’ कहते है। रामदेवजी की शिष्य लोकदेवी थीं।
★ नारायणी माता-
11वीं शताब्दी में निर्मित नारायणी माता का मंदिर अलवर जिले की राजगढ तहसील में बरबा डूंगरी की तलहटी में स्थित है। नाई जाति के लोगों की यह कुलदेवी है। वैशाख माह में लगने वाले इनके मेले में नाई व मीणा लोग भाग लेते है। ★घेवर माता-
इसका मंदिर राजसमंद झील की पाल पर है। ये राजस्थान की एकमात्र देवी है, जो बिना पति के सती हुई।
★ अन्य:-
- नागणेजी माता - जोधपुर के राठौडों की कुलदेवी।
- जमवाय माता - जमवारामगढ़। कछवाहों की कुलदेवी।
- भदाणा माता- कोटा। मूठ के इलाज के लिए प्रसिद्ध।
- बाणमाता - उदयपुर के सिसौदिया वंश की कुलदेवी।
- पथवारी माता - तीर्थ यात्रा की सफलता हेतु पूज्य देवी।
- ज्वाला माता- जोबनेर। खंगारोतों की कुलदेवी।
- सुंधा माता- भीनमाल(जालौर)पालावतों की कुलदेवी ।
- आशापुरी या महोदरी माता - मोदरा (जालौर)। जालौर के सोनगरा चौहानों की कुलदेवी।
- चारभुजा देवी- खमनौर (हल्दीघाटी)। राजसमंद।
- दधिमति माता- गोठ मांगलौद (नागौर)। दाधीच ब्राहमणों की कुलदेवी।
- आवरी माता- निकुंभ (चितौड़गढ़)। लकवे के इलाज हेतु ख्यात।
- तनोटिया माता- जैसलमेर। जवानों की देवी।
- हिंगलाज माता- नारलाई (जोधपुर), लोद्रवा (जैसलमेर) व पाकिस्तान (बलुचिस्तान)।
- महामाया देवी- मावली (उदयपुर)। शिशु रक्षक देवी।
- चौथ माता- चौथ का बरवाड़ा (सवाई माधोपुर)।कंजरों की कुलदेवी।
- हिचकी माता- सनवाड़ फतेहनगरी (अजमेर)।
- शिवाजी की कुलदेवी - तुलजामाता - चितौड़गढ।
- प्रतिहार वंश - चामुण्डा माता- जोधपुर दुर्ग।
- राज राजेश्वरी देवी - भरतपुर। जाट राजवंश।
- आशापुरी माता - मोंदरा (जालौर)। चौहान वंश (जालौर)।
- विरात्रा माता (चौहटन)- बाड़मेर। भोपों की कुलदेवी।
- ब्राहमणी माता - बारां (सोरसन)। कुम्हारों की कुलदेवी।
- त्रिपुरा सुंदरी माता - तलवाड़ा (बांसवाड़ा) - पांचाल जाति की कुलदेवी।
- लुटियाली माता- फलौदी (जोधपुर)- कल्लों की कुलदेवी।
- चौथ माता - सवाई माधोपुर। कंजर जाति की आराध्या।
- छींक माता - जयपुर।
- छींछ माता - बांसवाड़ा।
- पीपाड़ माता- ओसियां (जोधपुर)।
- अम्बा माता- जगत (उदयपुर)।
- आसपुरी माता- आसपुर (डूंगरपुर)।
- भुंवाल माता- मेड़ता (नागौर)।
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