राजस्थान के प्रमुख शिलालेख

अभिलेख:- 
● पुरातात्विक स्रोतों में अभिलेख सबसे विश्वसनीय होते हैं क्योंकि ये तिथियुक्त एवं समसामयिक होते है। इनमें वंशावली क्रम, तिथियां, विशेष घटना, युद्ध, विजय, दान आदि का विवरण उत्कीर्ण कराया जाता रहा है।  
●  राजस्थान में अनेक शिलाओं प्रस्तर पट्टों,भवनों या मंदिरों की दीवारों, मंदिरों, स्तूपों, मठों, बावड़ियों, खेत खलिहानों के बीच बहुधा शिलाओं पर प्राप्त होते है। ये शिलालेख संस्कृत, हिन्दी, फारसी, राजस्थानी व उर्दू भाशाओं में गद्य व पद्य दोनों रूपों में मिलते है। 
● दक्षिण पूर्वी व दक्षिण पश्चिमी राजस्थान में सर्वाधिक मात्रा में शिलालेख प्राप्त हुए है। 
● जिन शिलालेखों में किसी शक़्सक विशेष की उपलब्धियों का उल्लेख मिलता है, उन्हें ’’प्रशस्ति’’ कहा जाता है। कुंभलगढ़ प्रशस्ति व राज प्रशस्ति इसके मुख्य उदाहरण हैं।


राजस्थान के प्रमुख अभिलेख:-

बड़ली का शिलालेख(443 ई पू):-
       अजमेर से 27 किमी दूर बड़ली नामक गाँव मे भिलोट माता के मंदिर से स्तम्भ पर उत्कीर्ण यह लेख प्राप्त हुआ है। यह राजस्थान का यह सबसे प्राचीन शिलालेख ब्राह्मी भाषा में है।इसे सर्वप्रथम डॉ ओझा ने खोजा था।वर्तमान में यह अजमेर संग्रहालय में सुरक्षित है।इस शिलालेख में तत्समय अजमेर के साथ साथ मझमिका (चित्तोड़) में भी जैन धर्म के प्रसार की बात कही गयी है। 

घोसुंडी का शिलालेख -(दूसरी शता ई-पू-)
द्वितीय शताब्दी ई-पू- का चित्तोड़ में अवस्थित यह शिलालेख संस्कृत भाषा में है। इसमें गजवंश के 'सर्वतात' नामक शासक द्वारा अश्वमेध यज्ञ के आयोजन का उल्लेख मिलता है।यह भागवत धर्म का प्रथम उल्लेख प्राप्त होता है।

बसंतगढ अभिलेख (625ई.):-
इस अभिलेख में राजस्थान शब्द का सबसे प्राचीन प्रयोग 'राजस्थानीयादित्य' उपलब्ध हुआ है।

सांभोली का शिलालेख -(646 ई.)
उदयपुर से प्राप्त इस शिलालेख में गुहिल राजा शिलादित्य की विजयों व उपलब्धियों का विवरण मिलता है।

★  मानमोरी का शिलालेख- (713 ई.)
यह लेख चित्तौड़ के पास मानसरोवर झील के तट पर कर्नल टॉड को मिला था, जिसे उन्होंने इंग्लैण्ड जाते समय समुद्र में फेंक दिया था। केवल इसका अनुवाद उनके पास बचा रहा जिसे उनकी पुस्तक ’एनल्स’  में प्रकाशित किया गया। इस शिलालेख में मौर्यवंशी शासक  मानमोरी को गुहिल शासक बप्पा रावल द्वारा परास्त कर चित्तौड़ में गुहिल वंश की नींव डालने का उल्लेख है। 

★ कणसवा शिलालेख (738 ई.)
कोटा से प्राप्त इस शिलालेख से मौर्यवंशी शासक धवल का उल्लेख मिलता है।

घटियाला का शिलालेख (861 ई.)
घटियाला (जोधपुर) से प्राप्त इस शिलालेख से प्रतिहार शासक 'कक्कुक' संबंधी वर्णन मिलता है। घटियाला को ’रोहिन्सकूप' के नाम से भी जाना जाता है।

हर्षनाथ प्रशस्ति (973 ई) - हर्षनाथ (सीकर) के मंदिर की यह प्रशस्ति 973 ई. की है। इसमें मंदिर का निर्माण अल्लट द्वारा किये जाने का उल्लेख है। इसमें चोहानों के वंशक्रम का उल्लेख है।

★  बिजौलिया शिलालेख (1170 ई.)  - 
        बिजौलिया (भीलवाड़ा) स्थित एक पार्श्वनाथ मंदिर की दीवार पर संस्कृत भाषा में उत्कीर्ण यह लेख प्राप्त हुआ है। इस शिलालेख में सांभर व अजमेर के चौहानों की वंशावली तथा उनकी उपलब्धियों का विवरण है। इसमें चौहानों को ’वत्सगौत्रीय ब्राह्मण’ बताया गया है। बिजौलिया शिलालेख के अनुसार सांभर झील का निर्माण ’वासुदेव चौहान’ ने करवाया था। इसमें कई नगरों के प्राचीन नाम भी मिले है। जाबालिपुर (जालौर), श्रीमाल (भीनमाल), ढ़िल्लिका (दिल्ली), नागछद्र (नागदा) आदि।इस शिलालेख का रचयिता 'गुणभद्र' था।

 
चिरवा का शिलालेख (1273 ई.)
चिरवा गांव (उदयपुर) से प्राप्त हुआ है। इसमें गुहिल वंशी बप्पा रावल से लेकर समरसिंह तक का वर्णन है। 

श्रृंगी ऋषि शिलालेख (1428 ई.)-
श्रृंगी ऋषि (उदयपुर) नामक स्थान से प्राप्त इस शिलालेख में हम्मीर, क्षेत्रसिंह, लक्षसिंह व मोकल की उपलब्धियाँ वर्णित है। 

रणकपुर प्रशस्ति (1439 ई.)-
यह प्रशस्ति रणकपुर में स्थित चौमुखा मंदिर के बांये स्तंभ पर लगी हुई है व संस्कृत में है। इसमें मेवाड़ के राणा बप्पा रावल से लेकर कुंभा तक की उपलब्धियां वर्णित है। रणकपुर प्रशास्ति में बप्पा व कालभौज को अलग-अलग व्यक्ति बताया गया है। इसमें कुम्भा की विजयों व विरूदों (उपाधियों) का भी उल्लेख है। 

कीर्तिस्तंभ प्रशस्ति (1460 ई.) -
चित्तौड़ दुर्ग की इस प्रशास्ति के रचयिता कवि अवि व महेश थे। इसमें संस्कृत में बप्पा, हमीर, मोकल व कुंभा की उपलब्धियों व विजयों का बखान है। इस प्रशस्ति में कुंभा को सपादलक्ष, नरायणा, आबू व बसंतगढ़ जीतने का उल्लेख है। इसमें कुंभा को दानगुरू, राजगुरू व शैलगुरू कहा गया है। कुंभा विरचित ग्रंथों चण्डीशतक, गीतगोविंद टीका, संगीतराज का भी उल्लेख है। 

★ कुंभलगढ़ प्रशस्ति (1460 ई.) -
यह प्रशस्ति कुंभश्याम (मामादेव) मंदिर (कुंभलगढ़, राजसमंद) में प्राप्त हुई है। इसमें मेवाड़ की रावल शाखा तथा राणा शाखा की विभिन्नता का सहजता से उल्लेख है। इस प्रशस्ति में बप्पा द्वारा हारित ऋषि की कृपा से मेवाड़ राज्य की प्राप्ति, रतनसिंह की चित्तौड़ की रक्षा के लिये मृत्यु हो जाने का उल्लेख है। इस प्रशस्ति राणा हम्मीर को ’विषमघाटी पंचानन’ कहा गया व राणा कुंभा द्वारा कुंभलगढ के निर्माण का उल्लेख मिलता है। इसमें बप्पा रावल को ’विप्रवंशीय’ बताया है। इस प्रशस्ति के रचयिता कान्हा व्यास थे। 

एकलिंग प्रशस्ति (1488 ई.) -
इसमें राणा हम्मीर से लेकर रायमल तक के शासकों की उपलब्धियां वर्णित है। इसमें कुंभा के द्वारा सारंगपुर युद्ध (1437) में मांडू सुल्तान महमूद खलजी को पराजित करने का उल्लेख भी है।

★ जुनागढ़ प्रशस्ति (1597 ई.)
बीकानेर  के जूनागढ़ स्थित इस प्रशस्ति का रचयिता ’जेइता’ था। इसमें राव बीका से लेकर रायसिंह तक के राठौड़ शासकों की उपलब्धियों का बखान है। 

आमेर का लेख (1612 ई.)
इस लेख में कच्छवाहा वंश को ’रघुवंश तिलक’ कहा गया है। इसमें पृथ्वीराज से लेकर मानसिंह तक की उपलब्धियों का उल्लेख है। इसमें मानसिंह द्वारा जमवा रामगढ दुर्ग के निर्माण का वर्णन है। 

जगन्नाथराय प्रशस्ति (1675 ई.)-
जगदीश मंदिर (उदयपुर) के सभा मण्डप में लगी इस प्रशस्ति में मेवाड़ के महाराणा बप्पा से लेकर सांगा तक की उपलब्धियों का बखान है व हल्दीघाटी युद्ध का भी वर्णन है। इसका रचयिता कृष्णभट्ट था।  

★ राज प्रशस्ति (1676 ई.):-
यह प्रशस्ति रणछोड़ भट्ट द्वारा 25 श्याम शिलाओं पर उत्कीर्ण कर राजसमंद झील की नौ चौकी पाल पर लगवा दी गई। यह विश्व का संस्कृत भाषा का सबसे बड़ा शिलालेख है। इसमें मेवाड़ के महाराणाओं की उपलब्धियों का बखान है। महाराणा राजसिंह द्वारा अकाल के समय राजसमंद झील का निर्माण व प्रताप व मुगलों के बीच हुए हल्दी घाटी युद्ध व महाराणा अमरसिंह व मुगलों के बीच हुई संधि का उल्लेख भी इस प्रशास्ति में है। इस प्रशस्ति का रचयिता रणछोड़ भट्ट था, जो राणा राजसिंह का आश्रित कवि था। 


★ फारसी भाषा के अभिलेख
(1) अढाई दिन का झोंपड़ा लेख (1200ई.) ।
(2) शाहजहांनी मस्जिद का लेख - अजमेर (1637 ई.)।
(3) सैय्यद हुसैन की दरगाह का लेख - तारागढ, अजमेर (1675 ई.)।

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