जाट राजवंश का इतिहास

           ।।भरतपुर का जाट राजवंश।।
राजस्थान के पूर्वी भाग यथा - भरतपुर, धौलपुर, डीग आदि पर जाट वंश का शासन था। यहाँ जाट शक्ति का उत्थान ओरंगजेब के शासन काल में हुआ।
               सिनसिनवार गौत्र के जाट गोकुल ने इस राजवंश की स्थापना की।  इसके प्रमुख शासक निम्न थे , यथा - गोकुल-राजाराम (अकबर के मकबरे को लूटा) - चूडामन (भरतपुर के जाट राज्य की स्थापना) - बदन सिंह (ब्रजराज की उपाधि व डीग के महलों का निर्माण) - सूरजमल (जाट जाति का प्लेटो)  - जवाहर सिंह - रतनसिंह - रणजीत सिंह (1803 में अंग्रेजों को धूल चटाई।)



इनका विस्तृत विवरण इस प्रकार हैं-
★ गोकुल जाट:-
ओरंगजेब के विरोद्ध पहला संगठित विद्रोह दिल्ली और आगरा क्षेत्र में बसे जाटो ने किया। इनका नेता था - गोकुल जाट।
        1670 ई ,में गोकुल जाट ने विद्रोह का नेतृत्व किया। परन्तु उसे बंदी बना कर मार डाला।  इसके पश्चात राजाराम जाट ने विद्रोह का नेतृत्व किया। राजा राम ने सिकंदरा ( आगरा ) में स्थित अकबर के मकबरे को लूटा और उसकी अस्थियां निकल कर उसका हिन्दू विधि विधान के साथ दाह संस्कार किया।
★ चूडामण (1695-1721)                                                               1688 ई में राजा राम की मृत्यु के बाद विद्रोह के नेतृत्व चूडामण जाट ने संभाला। उसने भरतपुर में जाट राज्य की स्थापना की। ओरंगजेब की मृत्यु तक उसने जाटो की शक्ति को संगठित किया। थूण के किले का निर्माण करवाया। 1721 ई में चूडावण ने जहर खा कर आत्महत्या कर ली। 
★ बदनसिंह (1723-55 ई )-
            चूडामण के भतीजे बदनसिंह को जयपुर नरेश सवाई जयसिंह ने डीग की जागीर दी एवं ब्रजराज की उपाधि दी। बदन सिंह ने डीग, कुम्हेर, भरतपुर व बैर में नए दुर्ग बनवाये। उसने जाट राज्य का विस्तार किया।

★ महाराजा सूरजमल (1756-63 ई )-
 सूरजमल को जाटो का प्लेटो और जाटो का अफलातून कहते है। भरतपुर के किले का निर्माण करवाया एवं अपनी राजधानी भरतपुर को बनाया। पानीपत के तीसरे युद्ध में मराठा सेनापति सदाशिव राव से अनबन हो जाने पर युद्ध में भाग नहीं लेता है। परन्तु भागते हुए मराठा सैनिको को भरतपुर में शरण देता है। राजमहल एवं बगरू के युद्ध में ईश्वरी सिंह की सहायता करता है। 1754 ई में दिल्ली पर आक्रमण करता है। वहां से नूरजंहा का झूला उठाकर लता है और इसे डीग ने महलो में स्थापित करवाता है। 


            सूरजमल की मृत्यु 1763 ई में नजीब खा के खिलाफ लड़ते हुए हुई।सूरजमल ने भरतपुर में नवीन प्रशासनिक व्यवस्था की स्थापना की। जिसमे पद का आधार योग्यता को बनाया गया।

★ जवाहर सिंह(1763-68)-                                                                        सूरजमल की मृत्यु के बाद जवाहर सिंह राजा बनता है। 1774 ई में दिल्ली पर आक्रमण करता है। एवं दिल्ली के किले से अष्ट धातुओं के बने दरवाजे को लेकर आता है और इसे भरतपुर के किले में लगवाता है। ये दरवाजे मूल रूप से चितौड़ के किले में लगे हुए थे, जिन्हे अकबर चितौड़ अभियान के दौरान आगरा ले गया था। ओरंगजेब इन्हे आगरा से दिल्ली ले आया था। जवाहर सिंह ने इस जीत के उपलक्ष में भरतपुर के किले में जवाहर बुर्ज का निर्माण करवाया। जवाहर बुर्ज में भरतपुर के राजाओ का राज तिलक किया जाता है। 

★ रणजीत सिंह(1776-1805)-


       1803 ई में दूसरे अंग्रेज - मराठा युद्ध के दौरान जसवंत राव होल्कर को भरतपुर में शरण देता है। 2 माह तक जनरल लेक के नेतृत्व में अंग्रेजों के कई प्रयासों के बावजूद किले को जीता न जा सका।हालांकि यह किला मिट्टी की प्राचीर निर्मित था, परन्तु उसी मिट्टी की प्राचीर के कारण अंग्रेजी गोले नाकाम हुए, चूंकि यह किला अनेकानेक आक्रमण के बावजूद अंग्रेजों के हाथ न लग सका, उनको यह मिट्टी का किला भी लोहे समान जान पड़ा, इस लिए भरतपुर के किले का नाम लोहागढ़ पड़ गया। 

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