राजस्थान में भाषा व बोलियां
◆◆राजस्थान में भाषा व बोलियां◆◆
● राजस्थान की मातृभाषा राजस्थानी हैं तथा राजस्थान की राजभाषा हिन्दी हैं।राजस्थानी मूलतः हिंदी की उपभाषा है।
● राजस्थानी भाषा दिवस 21 फरवरी को बनाया जाता हैं।राजस्थान की मूल भाषा राजस्थानी हैं। राजस्थानी भाषा की लिपि-देवनागरी है।
● राजस्थानी भाषा की उत्पत्ति यद्यपि "शौरसेनी अपभ्रंश" से मानी जाती है, लेकिन डाॅ. ग्रियर्सन ने इसकी उत्पति नागर अपभ्रंश से मानी हैं।
● राजस्थान में सर्वाधिक भाषा मारवाड़ी बोली जाती हैं। अबूल-फजल ने अपनी पुस्तक आईने-अकबरी में मारवाड़ी भाषा को भारत की मानक बोलियों में शामिल किया था।
● राजस्थानी साहित्य का स्वर्णकाल 1700-1900 ई. तक माना जाता हैं।
● राजस्थानी भाषा का प्राचीनतम ग्रन्थ ‘वज्रसेन सुरी’ द्वारा रचित ‘भरतेश्वर बाहुबलि घोर’ है, तथा उधोतन सूरी की ‘कुवलयमाला’ ग्रंथ में भारत की 18 देशी भाषाओं में मारवाड़ी भाषा को ’मरूवाणी’ के नाम से पुकारा गया।
● 'डिंगल' मारवाड़ी का साहित्यिक रूप डिंगल कहलाता हैं, डिंगल चारणों द्वारा प्रयुक्त होती हैं तथा यह मारवाड़ी मिश्रित राजस्थानी हैं इसको गीत के रूप में लिखा जाता हैं। इसकी उत्पति गुर्जरी अपभ्रंश से हुई तथा इसका प्रयोग पश्चिमी राजस्थान में होता हैं। राजस्थान का सर्वाधिक साहित्य डिंगल भाषा में हैं। -प्रमोद का भी वर्णन होता है।डिंगल शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम 1871 में कवि बांकीदास जी आशिया ने अपनी रचना 'कुकवि बत्तीसी' में किया था।
● 'पिंगल' यह ब्रज मिश्रित राजस्थानी हैं तथा इसका प्रयोग भाटों द्वारा किया जाता हैं। इसे छन्द व वेदों के रूप में लिखा जाता हैं, इसका प्रयोग पूर्वी राजस्थान में होता हैं तथा इसकी उत्पति शौरसेनी अपभ्रंश से हुई हैं।
● 1912 में जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने अपनी पुस्तक ‘द लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया’ में यहाँ की भाषा के लिए "राजस्थानी" शब्द का प्रयोग किया था। जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने राजस्थानी को पांच उपशाखाओं में बांटा हैं।-पश्चिमी राजस्थानी,उतर-पूर्वी राजस्थानी,मध्य पूर्वी राजस्थानी,दक्षिणी-पूर्वी राजस्थानी,दक्षिणी राजस्थानी।
● इटालियन विद्वान एल पी तैस्सीतोरी ने 1914 से 1919 के समय मे बीकानेर राजदरबार में रहकर राजस्थानी भाषा व ख्यात साहित्य का विशद अध्ययन किया।उन्होंने राजस्थान की बोलियों को 2 वर्गों में बांटा- 1. पूर्वी राजस्थानी व 2. पश्चिमी राजस्थानी।

★ राजस्थानी की बोलियॉं:-
1. मारवाड़ी - बोलने वालों की संख्या व क्षेत्रफल की दृश्टि से राजस्थान में प्रथम स्थान पर है। यह बोली जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर, नागौर, सिरोही, सीकर व पूर्वी सिंध व दक्षिण पंजाब में सर्वाधिक बोली जाती है। थली, ढटकी, माहेश्वरी, ओसवाली, बीकानेरी, देवडावाडी, नागौरी व गोडवाडी इसकी प्रमुख उपबोलियां है। मारवाडी को राजस्थन की मानक बोली भी कहा जाता है। मारवाडी को उद्योतन सूरी द्वारा लिखित कुवलयमाला में ’मरूभाषा’ कहा है। साहित्यिक मारवाड़ी को 'डिंगल' कहा जाता है, जो साहित्यिक दृष्टि से समृद्ध होती है।जैन साहित्य व मीरां साहित्य इसी भाषा में है, रजिया के सोरठे पूर्वी मारवाड़ी में है जबकि पृथ्वीराज राठौड़ का ग्रन्थ बेलि किशन रूकमणी री ख्यात उतरी मारवाड़ी में हैं।
2. मेवाड़ी - मेवाड़ क्षेत्र- उदयपुर, राजसमंद, बांसवाड़ा, डुंगरपुर, भीलवाड़ा व चितौड़गढ़ में बोली जाती है। कीर्तिस्तंभ प्रशस्ति से स्पष्ट होता है कि कुंभा द्वारा रचित चार नाटकों में मेवाड़ी भाषा का प्रयोग किया गया था।
3. ढूंढ़ाड़ी - ढूंढ़ाड़ी ढूंढ (टीला) शब्द से बना है। ढूंढ़ाड़ी को जयपुरी भी कहा जाता है। यह जयपुर, लावा, किशनगढ, टोंक, दौसा में बोली जाती है। दादू व उसके अधिकांश शिष्यो की रचनायें भी इसी भाषा(सिधूकडी) में है।
4. हाड़ौती - कोटा, बूंदी, बारां, झालावाड़। सूर्यमल्ल मिश्रण की रचनायें।
5. मेवाती - अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली।चरणदास- दयाबाई- सहजोबाई की रचनाएं इसी भाषा मे हैं।
6. बांगड़ी - डूंगरपुर, बांसवाड़ा। जार्ज ग्रियर्सन ने इसे ’भीली’ बोली कहा है।
7. मालवी - कोटा, झालावाड़, प्रतापगढ़। मारवाड़ी और ढूंढ़ाड़ी का मिश्रण।
8. रांगड़ी - मारवाड़ी व मालवी का मिश्रण। यह बोली मेवाड़ के ग्रामीण क्षेत्रों में राजपूतों द्वारा बोली जाती हैं। इस बोली को कर्कष आवाज में बोला जाता हैं।
9. खैराड़ी - शाहपुरा (भीलवाड़ा) व बूंदी के कुछ इलाके। मेवाड़ी, ढूंढ़ाड़ी व हाड़ौती का मिश्रण।
10. अहीरवाटी - राठ क्षेत्र (बहरोड़, मण्डावर, कोटपूतली)। हम्मीर रासो (जोधराज) इसी भाषा मे रचित है।
11. ब्रज - धौलपुर, भरतपुर। कृष्ण भक्ति से संबंधित साहित्य की रचनाएं।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य:-
● राजस्थानी भाषा की प्राचीनतम रचना – वज्रसेन सुरी की भरतेश्वर बाहुबली घोर (1168 ई. ) मानी जाती है।
● राजस्थानी भाषा का पहला नाटक- शिवचंद भरतिया का "केसर विलास"।
● संवतोल्लेखन की प्रथम रचना- शालिभद्र सुरी की भरतेश्वर बाहुबली रास ( 1184 ई. ) मानी जाती है।
● राजस्थानी भाषा का पहला उपन्यास - शिवचंद भरतिया का 'कनक सुंदर' माना जाता है।
● पहली कहानी- शिवचंद भरतिया की 'विश्रांत प्रवासी' (1904 ई.)।
● पहली राजस्थानी व्याकरण- प.रामकरण आसोपा द्वारा तैयार किया गया।
● पहला राजस्थानी शब्दकोश- सीताराम लालस द्वारा तैयार किया गाया।
● राजस्थानी भाषा की आधुनिक काव्य रचना- चन्द्रसिंह बिरकाली "बादली" है।
● राजस्थानी कहावतों का संकलन – मुरलीधर व्यास ने किया।
● राजस्थानी साहित्य की कौनसी प्राचीन विद्या गद्य-पद्य तुकांत रचना होती है - वचनिका।
● कह दो आ डंके री चोट, मारवाड़ नहीं रह सी ओट कविता के रचयिता - जयनारायण व्यास।
● डिंगल का हैरोस - पृथ्वीराज राठौड़।
● इला न देणी आपणी, हालरियो हुलराय; पूत सिखावै पालणै, मरण बड़ाई माया प्रस्तुत दोहा पंक्ति किस प्रसिद्ध रचना की है - सूर्यमल्ल मिश्रण की वीर सतसई।
● कान्हड़दे प्रबंध के रचयिता महाकवि पदमनाभ जालोर के शासक अखेराज सेानगरा के दरबारी थे।
● राजस्थानी साहित्य के अमर लेखक बांकीदास आशिया मारवाड़ महाराजा मानसिंह के व दयालदास सिंढायच बीकानेर महाराज रतनसिंह के दरबारी थे।
● विधवा जीवन पर लिखी गई रचना हूं गौरी किण पीव री के लेखक है - यादवेंद्र शर्मा चंद्र।
● विजयदान देथा द्वारा रचित बाता री फुलवारी की प्रमुख विशेषता है - राजस्थानी लोककथाओं का संग्रह।
● किस ग्रंथ के 5वां वेद व 19वां पुराण कहा गया है - पृथ्वीराज राठौड़ द्वारा रचित वेलि क्रिसन रूक्मणी री।
● राजस्थान के इतिहास की सबसे प्रसिद्ध रचना व सबसे महत्वपूर्ण कृति है सबसे प्रथम रचना - कर्नल जेम्स टॉड की "एनल्स एंड एंटीक्विटीज आफ राजस्थान" (2 खंडों में)।
● कर्नल जेम्स टॉड की प्रसिद्ध कृति एनल्स का प्रथम खंड 1829 में व द्वितीय खंड संन 1832 में प्रकाशित हुआ। एनल्स के प्रथम खंड में राजपूताने की भौगोलिक स्थिति राजपूतों की वंशावली व मेवाड़ रियासत का इतिहास है।
● विग्रहराज चतुर्थ द्वारा रचित हरिकेलि नाटक के कुछ अंश ढाई दिन का झौंपड़ा नामक मस्जिद की दीवारों पर उत्कीर्ण है।
● आयो इंगरेज मुलक रै उपर काव्य रचना के लेखक थे - बांकिदास।
● गुलिस्तां -शेखसादी द्वारा लिखे गये इस ग्रंथ को अलवर महाराजा विजयसिंह ने जवाहरातों की स्याही से लिखवाया था।
● पवाड़ा - वीरों के विशेष कार्यों का वर्णन करने वाली रचना अर्थात लोक गाथाएं।
● वचनिका शैली की प्रथम सशक्त रचना सबसे प्राचीन वचनिका शैली की प्रथम रचना किसे माना जाता है - शिवदास गाडण द्वारा रचित अचलदास खींची री वचनिका ।
● ख्यात शैली की प्रथम रचना सबसे प्राचीन ख्यात - मुहणौत नैणसी री ख्यात।
● राजस्थान का प्रथम हिंदी गद्य निर्माता, प्रथम हिंदी उपन्यासकार व प्रथम पत्रकार - बूंदी के मेहता लज्जाराम शर्मा।
● राजस्थानी साहित्य की गद्य विधाएं - ख्यात, वात, विगत, विगत, वंशावली, हाल, हकीकत, दवावैत।
● राजस्थानी साहित्य की पद्य विधाएं - रासौ, वेलि, निसाणी, वचनिका।
● ख्यात- इतिहास परक रचना जिसका प्रचलन अकबर के आदेश पर हुआ। प्राचीनतम ख्यात मुहणौत नैणसी री ख्यात मानी जाती है। दयालदास री ख्यात(बीकानेर रा राठौड़ा री ख्यात) अंतिम ख्यात मानी जाती है।
● बात :-कथा परक रचना। वीरमदेव सोनागरा री वात- पद्मनाभ।यह ख्यात से छोटी होती है।
● वेलि - ऐसी रचना जिसमें किसी शासक या सामंत की उपलिब्धयों के साथ प्रेम भावना का वर्णन होता हैं।उदा.- बेली कृष्ण रुक्मणि री।
● वचनिका :-गध-पद्य मिश्रित-तुकांतर रचना।उदा.-अचलदास खींची री वचनिका।
● मरसया :-किसी शासक या सामन्त की मृत्यु पर लिखी जाने वाली शोक परक रचना ।
● प्रकाश :-वंश या लोकनायक के जीवन चरित्र का चमत्कारिक वर्णन ।उदाहरण- पाबू प्रकाश(मोडजी आशिया)।
● विलास :-किसी शासक या सामंत की उपलब्धियां के साथ आमोद -प्रमोद का भी वर्णन होता है। उदाहरण-
बलवंत विलास(सूर्यमल्ल मिश्रण)।
● परची :-लोक संत के जीवन चरित्र का काव्यमय वर्णन।रैदास री परची।
● रासौ :-केवल वीर या श्रंगार प्रधान रचना।उदाहरण- पृथ्वीराज रासो, खुमाण रासो।
● दवावैत :-ऐसी रचना जिसमें अरबी फारसी की रचना में किसी की प्रशंसा की जाती है।
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