राजस्थान में चित्रकला
राजस्थान की चित्रकला शैलियां-
पृष्ठभूमि-
● राजस्थान चित्रकला का सर्वप्रथम वैज्ञानिक वर्गीकरण 'डॉ. आनन्द कुमार स्वामी' ने 1916 में किया। जिसके आधार पर उन्होंने राजस्थान चित्रकला को राजपूत शैली नाम दिया।
● एन.सी.मेहता ने राजस्थानी चित्रशैली को 'हिन्दू चित्रकला शैली' नाम दिया।
● ’रामकृष्ण दास’ ने सर्वप्रथम इस शैली को ’राजस्थान चित्रशैली’ नाम दिया।
● कोटा जिले के अलनिया व दर्रा, आहड (उदयपुर), बैराठ (जयपुर) व दर (भरतपुर) के शैलाश्रयों में आदिम मानव के द्वारा उकेरे गये रेखांकन व चित्र प्रारंभिक चित्रण के उदाहरण मिलते है। इन्हें ’’अकारद चित्र’’कहा जाता है।
★ चित्रकला का उद्भव व विकास-
● राजस्थान में सर्वप्रथम चित्रण की शुरूआत ’मेदपाट’(मेवाड़) में 15वीं सदी मे अपभ्रंश शैली में हुई। या गुर्जर प्रतिहार।
● राजस्थान में ताड़ पत्र पर चित्रित प्रथम ग्रंथ ’’श्रावक प्रतिक्रमण सूत्रचूर्णि’’ है, जिले कमलचंद्र के द्वारा रचा गया जो 1260 में गुहिल वंशीय शासक तेजसिंह के समय रचा गया।
● राजस्थानी चित्रकला का उद्भव ’’अपभ्रंश शैली’’ से माना गया है।
● राजस्थानी चित्रकला का स्वर्णकाल 17वीं-18वीं सदी माना गया है।
★ राजस्थानी चित्रकला की प्रमुख विशेषताएं:-
1. लोक जीवन का सानिध्य, भाव प्रवणता का प्राचुर्य, विषय वस्तु का वैविध्य, विविध रंगों का प्रयोग, देश काल की अनुरूपता व प्राकृतिक परिवेश का चित्रण।
2. विभिन्न ऋतुओं का श्रृंगारिक चित्रण कर उनके मानव जीवन पर प्रभाव का अंकन।
3. प्रकृति का मानवीकरण, प्रकृति को जड़ न मानकर चेतन मानना।
4. नारी सौंदर्य का अद्भुत चित्रण।
★ राजस्थानी चित्रकला शैली का वर्गीकरण -
अध्ययन की दृष्टि से राजस्थान की चित्रकला शैली को निम्न भागों में बांटकर अध्ययन किया जा सकता है-
1. मेवाड़ शैली- उदयपुर, नाथद्वारा, चावण्ड, देवगढ़।
2. मारवाड़ी शैली- जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर, किशनगढ, नागौर, अजमेर।
3. ढूंढाड़ शैली- आमेर, जयपुर, शेखावाटी, अलवर, करौली।
4. हाडोती शैली- बूंदी, कोटा, झालावाड़।
★ उदयपुर (मेवाड़) शैली -
यह राजस्थान का मूल व सबसे प्राचीन चित्रशैली मानी जाती है। 1260 में महाराणा तेजसिंह के समय चित्रित 'श्रावक प्रतिक्रमण सूत्रचूर्णि’ इस शैली का प्रथम उदाहरण है। इस शैली के प्राचीन चित्रित ग्रंथों में ’सुपासनाहय चरित्रम्’ (हीरानन्द)-1423 व कल्पसूत्र भी है।
मेवाड़ी शैली की विशेष प्रगति महाराणा अमरसिंह के समय हुई।1605 में चावंड में निसारदी द्वारा चित्रित ’रागमाला’ इस शैली का सर्वश्रेष्ठ चित्र माना जाता है। महाराणा जगतसिंह ने राजमहल (उदयपुर) में ’चितेरो की ओवरी’ कला विद्यालय खोला, जिसे वर्तमान में ’तस्वीरां रो कारखानो’ कहा जाता है। महाराणा जगतसिंह का काल मेवाड़ी चित्रशैली का स्वर्णयुग माना जाता है।
●पंचतंत्र, गीत गोविंद, रागमाला, रागमंजरी, रसिकप्रिया, महाभारत, रामायण का चित्रण मेवाड़ी शैली की महत्वपूर्ण विशेषता है।
●नासिरूद्दीन, गंगाराम, भैंरोराम, कुपाराम, कमलचंद्र, शाहबुद्दीन- चित्रकार।
●इस शैली के चित्रों में मुख्यतः लाल व पीले रंग का प्रयोग किया गया है।
●इस शैली में कदम्ब वृक्ष व हाथी का चित्रण प्रमुखतः किया गया है।
●’कलीला-दमना’ नामक (नुरूद्दीन) दो नायक इस शैली की प्रमुख विशेषता है।
★ नाथद्वारा शैली
इस शैली को ’वल्लभ शैली’ भी कहा जाता है। इसे पिछवाई चित्रशैली भी कहते है। पिछवाई शैली में कृष्ण के बाल रूप व कृष्ण गोपियों की श्रृंगारिक क्रियाओं का चित्रण किया गया। नरोतम, नारायण देव, हीरालाल, कमला व इलाइची इस शैली के चित्रकार हुए। नाथद्वारा मे मुख्यतः कृष्ण-यशोदा के चित्र है।
★ जोधपुर (मारवाड़) शैली
इस शैली का उद्भव राव मालदेव के समय हुआ। इस शैली का प्रथम चित्रित ग्रंथ ’उतराध्यान सूत्र’ चोखेलाव महल में चित्रित है। महाराजा मानसिंह(1803-43) का काल इस शैली का स्वर्णकाल माना जाता है। इस शैली में पाबूजी व झुंझार जी की वीर गाथा, ढोला-मारू, निहालदे-मूमल आदि लोग गाथाओं का चित्रण किया गया। इस शैली में ’’आम व खंजन पक्षी’’ का चित्रण बहुतायत से हुआ है। 1623 में वीरजी रचित ’’रागमाला’’ इस शैली का सर्वश्रेष्ठ चित्र है। भाटी अमरदास, शिवदास, डालचंद, फैज अली भाटी किशनदास व भाटी नारायणदास इस शैली के प्रमुख चित्रकार हुए।
★ बीकानेर शैली
इस शैली का सबसे प्राचीन चित्र ’भागवत पुराण’ है जो, रायसिंह के समय चित्रित किया गया। महाराजा अनूप सिंह (1669-71) का काल इस शैली का स्वर्णकाल कहलाता है। इस शैली के विकास में उस्ता व मथैरण परिवार (जैन) का महत्वपूर्ण योगदान रहा। उस्ता कलाकारों में हिमामुद्दीन उस्ता व मथैरण परिवार में मुन्नालाल व चंदूलाल प्रमुख चित्रकार हुए। रामलाल, अली रजा हसन, हाकिम रूकनुदीन आदि प्रमुख चित्रकार हुए। इस शैली में एक ’बंद हाथी’ का विशेष आकर्शण है, जिसे कई जानवरों को संजोकर बनाया गया।
★ किशनगढ शैली
किशनगढ राज्य के स्थापना 1609 में महाराजा किशनसिह ने की। इस शैली को प्रकाश में लाने का श्रेय डॉ. एरिक डिक्सन व डॉ. फैयाज अली को जाता है। महाराज सांवत सिंह अथवा नागरीदास का काल इस शैली का स्वर्णकाल कहलाता है। इस शैली के चित्रकारों में निहालचंद मोरध्वज, अमरचंद, सीताराम, बदनराय व नानकराय है। बणी ठणी, दीपावली व सांझी चित्रण निहालचन्द व चांदनी रात की संगोष्ठी अमरचंद की रचना है।
★ ढूंढ़ाड़ शैली
ढूंढ़ाड़ के चित्रकार सर्वप्रथम ग्वालियर से इस क्षेत्र में आये। सवाई प्रताप सिंह (1778-1803) का काल इस शैली का सर्वप्रथम माना जाता है। इस शैली में राग रागिनी, नायिक भेद, बारहमासा, कृष्णलीला, रास मण्डल के चित्र प्रमुख है। चित्रकार ’साहिबराम’ द्वारा निर्मित ईश्वरीसिंह का आदमकद चित्र इस शैली का सर्वश्रेष्ठ चित्र है। यह शैली ’व्यक्ति चित्रण’ के लिये विख्यात है। साहित्यराम, मुहम्मदशाह, लालचंद, सालिगराम, गोविंद- इस शैली के चित्रकार हुए। इस शैली में ही पैरो में जूतियॉं दिखलाई देती है।
★ मेवाती (अलवर) शैली-
महाराजा विनय सिंह का काल इस शैली का स्वर्णकाल माना जाता है। महाराजा विनयसिंह ने शेख सादी के गुलिस्तां को 'गुलाम अली' द्वारा चित्रित कराया। राजगढ के शीशमहल में अंकित चित्र इस शैली के प्रारंभिक चित्र माने जाते है। इस शैली में ’’हाथी दांत’’ का चित्रण किया गया, जिसके प्रसिद्ध चित्रकार ’मूलचन्द सोनी’ हुए।गुलाम अली, बलदेव, डालूराम, सालिगराम, नानकराम इस शैली के प्रमुख चित्रकार हुए। यह एकमात्र शैली है जिसमें वेश्याओं का चित्रण दर्शाया गया। प्रतापसिंह के काल में चित्रित ’बैंसलो चित्रण’ प्रसिद्ध चित्र है।
★ बूंदी शैली-
महाराव उम्मेद सिंह का काल (1734-71) इस शैली का स्वर्णकाल माना जाता है। यह शैली ’पशु पक्षी शैली’ नाम से भी जानी जाती है। महाराव उम्मेदसिंह के काल में निर्मित ’’चित्रशाला’’ इस शैली का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है,जो रंगीन चित्रों के लिये प्रसिद्ध मानी जाती है। वर्षा में नाचता हुुआ मोर राजस्थान की आम विशेषता है। इसमें भी बूंदी शैली बेमिसाल है। अहमद अली, सुजन, रामलाल, श्रीकृष्ण व डालू- चित्रकार।
★ कोटा शैली-
उम्मेदसिंह(1771-1820) का काल इस शैली का स्वर्णकाल माना जाता है। ’’शिकार दृश्यों’’ का चित्रांकन कोटा शैली की विशेषता है, इसीलिये इसे ’शिकार शैली’ भी कहा जाता है। रघुनाथ, डालूराम, नूर मोहम्मद, लच्छीराम व गोविन्दराम-चित्रकार। 1768 में 'डालू' द्वारा चित्रित ’रागमाला’ कोटा शैली की सबसे बड़ी रागमाला है।
★ महत्वपूर्ण तथ्य:-
● विभिन्न रियासतों में ’’भित्ति चित्रांकन’’ की दृष्टि से कोटा-बूंदी क्षेत्र सबसे समृद्ध क्षेत्र है।
● राजस्थान में भितिचित्रण की आरायशा/आलागीला/पणा (शेखावाटी) पद्धति है।
● आलागीला पद्धति अकबर के साथ ’इटली’ से भारत व राजस्थान के जयपुर में आयी। मिटठूलाल कुमावत इसके प्रसिद्ध कलाकार हुए।
● ’’आखेट चित्रों’’ के लिये कोटा की आला जालिम हवेली प्रसिद्ध है।
● ’’बल खाती बालों की लट का अंकन’’ शेखावाटी की विशेषता है।
● उदयपुरवाटी(झुंझुनूं) की ’जोगीदास की छतरी’ के चित्र शेखावाटी के प्राचीनतम चित्र है। जिसका चित्रकार देवा था।
● राजस्थान में बने कृष्ण चित्रों को ’पट चित्र’ कहा जाता है।
● जैसलमेर के जिनभद्र सूरि जैन भण्डार में स्थित ’दश वैकालिका सूत्रचूर्णि’ तथा ’ओंध निर्युक्ति वृति’ चित्र भारतीय चित्रकला के दीपस्तंभ है।
● गोवर्धनलाल बाबा जिन्होंने ’बारात’ का चित्र बनाया को, ’भीलों के चितेरे’ कहा जाता है।
● आधुनिक चित्रकला को प्रारंभ करने का श्रेय 'कुंदनलाल मिस्त्री' को जाता है।
● अलवर के ’देवकी नंद शर्मा’ ने भिति व पशु चित्रण में विशेष ख्याति अर्जित की।
● सौभागमल गहलोत (जयपुर) को ’नीड का चितेरा’ कहा जाता है।
● शेखावाटी की हवेलिया ’फ्रेस्को ब्रूनो’ आलागीला चित्रण के लिए जगख्यात है।
● पं. द्वारकाप्रसाद शर्मा को चित्रण की दृष्टि से राजस्थान में ’गुरूजी’ कहा जाता है।
● फुकोफा संग्रहालय (जापान) में राजस्थान के सुरजीत कौर चोयल के चित्रों को स्थन मिला।
● चित्रकला की दृष्टि से ’नैडा की छतरियॉं’ (सरिस्का, अलवर) भी प्रसिद्ध है।
● रामगोपाल विजयवर्गीय एकल चित्र प्रदर्शनी की परंपरा को प्रारंभ करने वाले राजस्थान के सुप्रसिद्ध चित्रकार हुए।
● ’’टैम्परा पद्धति’’ का चित्रकला में प्रयोग फूलचंद वर्मा ने किया। इनको बतखों की मुद्रायें शीर्षक कृति के लिये ललित कला अकादमी (जयपुर) से नवाजा गया है।
● प्रसिद्ध ’गीत गोविंद’ कथानक मेवाड़ शैली से संबंधित है।
● सवाई मानसिंह ने 1859 में राजस्थान में ’स्कूल ऑफ आर्टस’ की स्थापना की जिसे ’मदरसा हुनरी’ भी कहते है।
● वर्षा में नाचता मोर बूंदी शैली की विशेषता है।
● बीकानेर के चित्रकार अपने चित्रों पर अपना नाम व तिथि लिखते थे।
● कृष्ण कनाही राजस्थान के प्रमुख कलाकार है, जिन्हें पद्म पुरस्कार मिला।
● भैंसों का चितेरा - परमानंद चोयल
● चीनी मिट्टी के बर्तनों पर रंगीन व आकर्षक चित्रकारी - ब्लू पॉटरी
● भ्रमर का सर्वाधिक चित्रण - किशनगढ शैली ।
● गुलिस्तां ग्रंथ का चित्रण - बलदेव व गुलाम अली।
★ प्रमुख चित्र संग्रहालय:-
अ. पोथी खाना - जयपुर
ब. पुस्तक प्रकाश - जोधपुर
स. अलवर संग्रहालय- अलवर
द. चित्रशाला- बूंदी
य. जैन-भण्डार - जैसलमेर
र. सरस्वती भंडार - उदयपुर
★ शैलियों में प्रयुक्त मुख्य रंग व वृक्ष:-
किशनगढ़ शैली - गुलाबी व श्वेत केला
बूंदी शैली - सुनहरा/चटकीला खजूर
कोटा शैली - नीला खजूर
उदयपुर शैली - लाल कदम्ब, हाथी
जोधपुर शैली - लाल-पीला आम, खंजन
अलवरशैली - हरा पीपल
जयपुर शैली - हरा वट, पीपल
★ चित्रकला से सम्बद्ध संस्थाये-
1. कलावृत - जयपुर
2. क्रियेटिव आर्टिस्ट ग्रुप - जयपुर
3. टखमण 28- उदयपुर
4. आयाम - जयपुर
5. धौरां - जोधपुर
6. चितेरा - जोधपुर
7. तुलिका कलाकार परिषद- उदयपुर
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